वरक वही था मगर दूसरी पढ़त चाही
कि मैंने उसकी महोबत से मंफ़त चाही
वरक वही था मगर दूसरी पढ़त चाही
कि मैंने उसकी महोबत से मंफ़त चाही
मजा जब था महाबत भरी
लराईने किछिर्दर से फारी मुजाहिम मत चाही
कि मैंने उसकी महोबत से मंफ़त चाही
बिछर के वक्त उसे
मुड़के भी नहीं देखा, तमाम उम्र जुदाई में आफियत चाही, कि मैंने उसकी महाबत से मंफ़त चाही।
बस एक बार मुझे खोल कर पढ़ामु केशिब, फिर उसने मेरी महाबत से मज़ात चाही, फिर मैंने उसकी महाबत से मंफ़त चाही।
बस एक बार मुझे खोल कर पढ़ामु केशिब, फिर मैंने उसकी महाबत से मंभव चाही, कि मैंने उसकी महाबत से मंभव चाही।
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अगबाक उसे मुड़के भी नहीं दिखा तमाम उमर जुदाई में आफियत चाही कि मैंने उसकी महबत से मंफ़त चाही
बस एक बार मुझे खोल कर पढ़ा मुकेश खिर उसने मेरी महबत से माजरत चाही कि मैंने उसकी महबत से मंफ़त चाही
बस एक बार मुझे खिर उसकी महबत से मंफ़त चाही