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Raaj Kumar
Dialogue Tum Kyon Ho

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कबारदा, तुम कौन हो, हम चिपाई हैं राजा के, गुनागार हैं ये हमारे, गुनागार है कौन, ये फैसला होगा राजा के दर्बार में।
कौन सी गुद्धी है वो, जो हमने सुलजाई नहीं है, ऐसी फरियाद, आज तक दर्बार में आई नहीं।
भीर और राजा, तुम्हारा जुर्म अगर साबित हुआ, घर से छुपकर भाग आने की सुझा देंगे तुम्हें।
जिस तरह धोता है धब्बा अपने दामन से कोई, हम युही धर्दी के सीने से मिठा देंगे तुम्हें।
और अगर काजी में और सैदा में है साजवाज, यानि ये शादी, हकीकत में कोई शादी नहीं।
तो सजा ऐसी मिलेगी इनके इस दर्बार से।
सुर्फ हो जाएगी इन दोनों के खूँ से जमीन।
काजी, तुम जब जबान खोलोगे मुझको आशा है सच ही बोलोगे।
सच ही बोलूगा।
मानता हूँ मैं, तुमको थोड़ा सा जानता हूँ मैं।
कैसे समझूँगा ये के खोटे हो।
बस तरह साहा खुदा से खोटे हो।
जिसमें नाजुक में जान खुदा की है।
मुझके अंदर जुबा खुदा की है।
जब भी बोलोगे सच ही बोलोगे।
वरना हर किस जुबा न खोलो।
जान से भी अजीज है ईमान।
मुझको झूटा समझते हो दिवान।
हीर ने तुमको हाँ कही दी?
जरूर।
क्या ये चच्चलाओ तुम?
जी हाँ।
झूट पर झूट बग रहे हो ।
जी हाँ।
जी नहीं झूटे पर खुदा की माद।
हीर ने हाँ कही थी दो, दो बार।
हीर को तब मिलेगी इसकी सदा
जोरम जो भी किया इसी ने किया
उसने जो किसे कुछ कहा होगा
तुमने कुछ और संगिया होगा
हीर की बात सारे घर ने सुनी
वो दिवानों की तरह चीखती थी
खसिन ये वाराज
हीर कीखती थी
कीखती क्यों अगर वो रज
कोई दिल की बुराज अगर भाए
क्यों दिवानों की तरह चिलाए
बात इतनी सी है मेरे सरकार
इसने पहले किया था कुछ इनका
इसकी माँ जहर खाने को उठी
जान अपनी गवाने को उठी
माँ की खातिर पिगल गई बेटी
इसने गर्दन चुका के
हाँ कहती
मुझको महराज अगर इजाज़त दे
करलू कादी से मैं भी दो बाती
माँ ने उसपर दबाव डाला था
खर यो बरबाद होने वाला था
सोई लर्की दबाव में आके
दर के
मजबूर होके
ख़बरा के
गर हुई हो निकाह पर राजी
शादी जायद नहीं है
वो कादी
अपने मजब में जायद नहीं
वो निकाह जिस दोनों
दिलो जान से राजी नहीं
प्रेर इंकार करती रही थी
अगर पिर ये शादी
किसी तरह शादी नहीं
बात शादी के एक रात भी, तुमने बीवी के सीने की धड़कन सुनी?
हम हती काथ सुनेंगे, फसाना नहीं, इस दिशाहर कभी तुमको माना?
नहीं
बता दो अभी तुमकी आसलियत है
फिर राजी थी
दोबारा सोच लो
राजी थी माराज
उठो काजी
ये क्या है? जानते हो?
जानता हूँ मैं
ये कुरान है
ये कुरान है
जो इसके संभी भी छूट बोलेगा
वो शैतान है
मैं सच कहता हूँ
पहले सर पर रखो इसको
फिर बोलो
छूट की बूत
तुम्हारी बात में है
लाओ कोई दवा
साथ में है
अपने राजा के राज की सहगारा
तक्ते शाही की ताज की सोगंद
जो कहूँगा मैं
सच कहूँगा आज
हीर शादी पे राजी थी
महराज
देख लो
कौन कौन घात में है
जिन्तगी अब
तुम्हारे आज में है
बोलते क्यों ये
गूंगे हो
तुम ये गूंगा गवर आए हो
जूट है जर्म
जानते हो तुम
खुक्म मजद का
मानते हो तुम
शादी शाब ले हीर की मर्थी
साफ लग्दों में उससे पूछी थी
हीर ने भी जबान खोली थी
क्या वो शादी से
खुश थी
राजी थी
क्या वो शादी से खुश थी
राजी थी
फिर पढ़ा कैसे कादी ने निकारा
याने रिश्वद मेली
फुदा की पना
अब कहो
उसने हाँ कही थी
नहीं
शादी की उसको कुछ खुशी थी
नहीं
गात कैदों ने उसकी थी
नहीं
जरूर
तुमने रिश्वद कमूर ची थी
रुजूर
कौन सी गुद्धी है वो, जो हमने सुलजाई नहीं है, ऐसी फरियाद, आज तक दर्बार में आई नहीं।
भीर और राजा, तुम्हारा जुर्म अगर साबित हुआ, घर से छुपकर भाग आने की सुझा देंगे तुम्हें।
जिस तरह धोता है धब्बा अपने दामन से कोई, हम युही धर्दी के सीने से मिठा देंगे तुम्हें।
और अगर काजी में और सैदा में है साजवाज, यानि ये शादी, हकीकत में कोई शादी नहीं।
तो सजा ऐसी मिलेगी इनके इस दर्बार से।
सुर्फ हो जाएगी इन दोनों के खूँ से जमीन।
काजी, तुम जब जबान खोलोगे मुझको आशा है सच ही बोलोगे।
सच ही बोलूगा।
मानता हूँ मैं, तुमको थोड़ा सा जानता हूँ मैं।
कैसे समझूँगा ये के खोटे हो।
बस तरह साहा खुदा से खोटे हो।
जिसमें नाजुक में जान खुदा की है।
मुझके अंदर जुबा खुदा की है।
जब भी बोलोगे सच ही बोलोगे।
वरना हर किस जुबा न खोलो।
जान से भी अजीज है ईमान।
मुझको झूटा समझते हो दिवान।
हीर ने तुमको हाँ कही दी?
जरूर।
क्या ये चच्चलाओ तुम?
जी हाँ।
झूट पर झूट बग रहे हो ।
जी हाँ।
जी नहीं झूटे पर खुदा की माद।
हीर ने हाँ कही थी दो, दो बार।
हीर को तब मिलेगी इसकी सदा
जोरम जो भी किया इसी ने किया
उसने जो किसे कुछ कहा होगा
तुमने कुछ और संगिया होगा
हीर की बात सारे घर ने सुनी
वो दिवानों की तरह चीखती थी
खसिन ये वाराज
हीर कीखती थी
कीखती क्यों अगर वो रज
कोई दिल की बुराज अगर भाए
क्यों दिवानों की तरह चिलाए
बात इतनी सी है मेरे सरकार
इसने पहले किया था कुछ इनका
इसकी माँ जहर खाने को उठी
जान अपनी गवाने को उठी
माँ की खातिर पिगल गई बेटी
इसने गर्दन चुका के
हाँ कहती
मुझको महराज अगर इजाज़त दे
करलू कादी से मैं भी दो बाती
माँ ने उसपर दबाव डाला था
खर यो बरबाद होने वाला था
सोई लर्की दबाव में आके
दर के
मजबूर होके
ख़बरा के
गर हुई हो निकाह पर राजी
शादी जायद नहीं है
वो कादी
अपने मजब में जायद नहीं
वो निकाह जिस दोनों
दिलो जान से राजी नहीं
प्रेर इंकार करती रही थी
अगर पिर ये शादी
किसी तरह शादी नहीं
बात शादी के एक रात भी, तुमने बीवी के सीने की धड़कन सुनी?
हम हती काथ सुनेंगे, फसाना नहीं, इस दिशाहर कभी तुमको माना?
नहीं
बता दो अभी तुमकी आसलियत है
फिर राजी थी
दोबारा सोच लो
राजी थी माराज
उठो काजी
ये क्या है? जानते हो?
जानता हूँ मैं
ये कुरान है
ये कुरान है
जो इसके संभी भी छूट बोलेगा
वो शैतान है
मैं सच कहता हूँ
पहले सर पर रखो इसको
फिर बोलो
छूट की बूत
तुम्हारी बात में है
लाओ कोई दवा
साथ में है
अपने राजा के राज की सहगारा
तक्ते शाही की ताज की सोगंद
जो कहूँगा मैं
सच कहूँगा आज
हीर शादी पे राजी थी
महराज
देख लो
कौन कौन घात में है
जिन्तगी अब
तुम्हारे आज में है
बोलते क्यों ये
गूंगे हो
तुम ये गूंगा गवर आए हो
जूट है जर्म
जानते हो तुम
खुक्म मजद का
मानते हो तुम
शादी शाब ले हीर की मर्थी
साफ लग्दों में उससे पूछी थी
हीर ने भी जबान खोली थी
क्या वो शादी से
खुश थी
राजी थी
क्या वो शादी से खुश थी
राजी थी
फिर पढ़ा कैसे कादी ने निकारा
याने रिश्वद मेली
फुदा की पना
अब कहो
उसने हाँ कही थी
नहीं
शादी की उसको कुछ खुशी थी
नहीं
गात कैदों ने उसकी थी
नहीं
जरूर
तुमने रिश्वद कमूर ची थी
रुजूर
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