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Jagjivan Bodh, Pt. 03
Bijender Chauhan
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Lyrics
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एक जीव की बात न कहता सकल जीवों को मोह जगडता ग्यांध्यांग जीव कैसे पाए मोह माया में मन भरमाए
जीव मन में तुम करो विचार इस विधी उतरूं भव से पार प्रेको बुद्धि दुख में मत जूले पिछला जन्म अपना मत भूले
गर्ववास तु फिर से पाए काल निरंजन तुझे सताए तुम मत जानो अमर है काया यह तन तो सपने की माया
जैसे नीद में सपना आवे नीद खुले तो कुछ ना पावे दिन चार चटट ही दिखलाए अंतकाल में सब मिट जाए
काल से यदि तुम मुख्ती चाहो गुल चरणों में प्रीति बढ़ाओ सत्गुरु ऐसे मंत्र बताते जिससे जीव परमपद पाते
सुनो मूर्ख जीव की ऐसी माया करम कमाते जन्म गवाया मोह मैं अपना नहीं चिपाओ सभी मित्रों में हरश दिखाओ
एक वर्ष शुशुरूप बनाए पशुरूप में जन्म गवाये तोतले बोल फिर मुख से बोले मात पिता उसके हर शित डोले
बहुती शोर फिर वो है मचाता बाहर भीतर दौड़ी लगाता कंचन घुगुरु तुरंत बनवाते रेशम डोरी उने पुआते
बालक संग वो केल को जाता नाच पूद के घर में आता मन चंचल यति आनंद करता सोच पिकर कुछ भी ना रखता
कौटू हल जो भी मन में रखता हर दिन तेज उसका बढ़ता गुबोल बहुत मुख से बखता करके कापट सुख उसको मिलता
करे अनीती जो मन को भाती संकट घड़ी नजर नहीं आती बारह वर्ष का तन उसका बनता अनन्त उपाय अब वो करता
प्रकट काम काया केल
अंदर भले बुरे में नहीं समझे अंतर अभिमानी वो अज्ञानी दिखाता ताक नेत्री घर घर जाता अब लाओं पर जोड़ी दिखाता ना माने तो पकड़ मंगाता जीव को जब जकड का काम मिट जाता सब उसका ज्ञान अधर्मी वन वो करता पाप
गर्ववास के भुलाई सब संताप गुरु चर्चाना उसे सुहाती हसी की टोली मन को भाती जुठी प्रशंसा जो उसकी करता मिट्रता वो उसी से करता
नरवास गर्व का भूल के हसते माया के जोले कहें कबीर सबसे तो
यह सुमर्य पिछले बोली गुण मन में उसके उगता कामातुर होके शादी करता पहले शादी किसी करता बहुत प्रेम संग उसके रखता विशय विवेक फिर उपजा भारी पीछे विवाही सुन्दर नारी
नारी संगारी
अनन्द उसको आता संग उसके वो सोता घाता करती सेवा अनेकों दासी पंधता मोह जाल की फांसी नौनो खंड के महल बनाए कलश सोने के बहुत चढ़ाए बहुत साज वो वहां सजाए पुष्प कमल की सेजी बिछाए नित दिन नई वो तिरिया लाता
खाना
पान पान रस वो सुहाता कहां तक मैं तुम्हे समझाऊं मोह माया का नपार पाऊं काम बाल अगे तो होता अंधा अंतकाल पड़े यम का फंदा विशे विकार ना उसको सूझे भैरों भूत शीतला पूजे सौगन गर्व की सबी भुलाए चका चौंद भव की उनको भारा
सब जीव कसम खा कर आते बाहर निकल के सबी भुलाते ऐसे जीव भूल करते सारे सब उनके गुरू बने सहारे जीव चेताने सत गुरू आए अली दास धोबी समझाए गुरू हंस बहुत चेताए फिरते हुए पाटन पुर आए
सत गुरू आए पाटन गाउ जग जीवन राजा बसे उस धाम राजा ना करता भगती ध्यान हसता भगत किसी को जान भगत की खोज वहाँ पर करता कोई बात ना हमरी सुनता
मन में अपने में ने विचारा कैसे माने शब्द हमारा जाकर बाग में आसिता
पेदिस काना किसी को दीना पारा वर्श से बाग सुखाना सुलके काठ हुआ पुराना पिला अपनी में वहाँ दिखाया सूखे बाग तो हरा कराया फल फुल बहुत वहाँ उगाये पक्षी बाग में बहुत उडाये
माली को सब दिये बधाई जागा भागा
तुमारा भाई उजड़ा बाग फिर खिला तुमारा
फल पूल वहाँ उगे अपारा
हर शिटमानी बाहर आया
देख बाग बहुत है सुख पाया
फूलों से भरी टोकिरी चार
नाना भाती लिये फला पार
विभिन प्रकार की मेवा लाया
तरवार में भेंट वो करने आया
राजा को सब अरपन करता
उससे राजा प्रश्न पूछता
कौन देश से माली आया
फूल अनूप कहां से लाया
किस बाग के फल ये प्यारे
अजब गजब से लगते सारे
नौ लखा है बाग हमारा
फल फूल सब उगते
न्यारा अच्रज राजा
बहुत मनाता संग प्रजा के वाग में जाता
कहो दिवानी ये कौन सी माया
उजड़ा बाग यह कौन चिलाया
जोतिशी पंडित सभी बुलाए
पत्री पोती सब लेके आए
लगन देखके यही बताए
कोई पुरुष यहाँ पर आए
नर्या पक्षी रूप धर आए
बाग में उन्हें सब खोजो जाए
बाग में सब खोजने जाते
बैठे संतिक ध्यान लगाते
राजा दर्शने उनका पाया
सारा नगर देखने आया
कह राजा धन्य भाग हमारे
दर्शन पाए जो संति तुमारे
आलिसी घर है गंगा आई
भूमी शीतल सारी बनाई
राजा से बोले तब ही तिकारी
सुन राजा एक बात हमारी
हम पर वार न चड़ाओ भाई
काहे देते तुम हमें बड़ाई
बाग विमल है हमने पाया
इस कारण यहां आसन लगाया
हम आसन जब वहां लगाते
फूल फली नजर जहां आते
राजा फिर से शीश नवाया
बारा वर्ष पहले बाग सुखाया
सुखा बाग बहुत समय बिताया
फल फूल नहीं इस पे तब से आया
फल फूल की सब छोड़े आस
कोई ना आए बाग के पास
जब से संत यहां तुम आए
उजड़ा बाग ये चमन बनाए
राजा कहे दया प्रभू कीजिये
मुक्ति दान हमें आप दीजिये
शीश मेरे पे रखिये हाथ
मैं रहूं सत्गुर तुमारे साथ
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Artist
Bijender Chauhan
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