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Mahisagar Teerth Ko Shrap Se Kaise Mili Mukti
V.A
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Lyrics
Uploaded by86_15635588878_1671185229650
इस पर नारज्जी मौन हो गए और नारज्जी ने कहा मैं तुम्हे पूरी कथा समझाता हूँ फिर आप निर्णे लेना
अब अर्जुन को नारज्जी ने बताया कि अर्जुन एक बार की बात है जब सारे तीर्थ जमा हुए
जिसमें प्रयाग तीर्थ था जिसमें प्रभागशेत्र तीर्थ था जिसमें हमारे महिसागर तीर्थ था जिसमें पुषकर तीर्थ था और समस्त नदियां समस्त जैसे गंगा, यमुना, कावेरी, नरमदा ये सारी नदियां सारे देवता सारे लोग जमा हुए
हुए और यह वहां बैठ करके एक सत्र ब्रह्मा जी ने बुलाया था और उस सत्र में यह सारे तीर्थ भी पहुंच
गए अब जब हमारे घर कोई आता है तो हम क्या करते हैं उन्हें एक ग्लास पहले पानी पिलाते हैं
आए था कि उस जमाने में असर दिया जाता था तो ब्रह्मा जी ने कहा कि अब यह अर्ज किसे समर्पित करें अर्ज
तो देना है तो वह अपने बैठे को बुलाया उनका नाम था पुलत्स रिशी पुलत्स रिशी आए और पुलत्स रिशी को उन्होंने
ब्रह्मा जी ने कि जाओ तुम अर्ग ले आओ मुझे इन तीर्थों को अर्ग समर्पित करना है तब पुलक्ष रिशी गए और अर्ग ले आए
अब ब्रह्मा जी के मन में आया कि अब मैं किस तीर्थ खेतर को महान कहूं क्योंकि पुषकर तीर्थ भी महान है
प्रयाग तीर्थ भी महान है प्रभाग शेत्र तीर्थ भी महान है महिसागर तीर्थिक शेत्र भी महान है
अब किसे महान समझूं अब मान लो एक कप है तो हम किस तीम को वो कप देने बड़ी मुश्किल हो जाती है और वही हाल
वहां पर उनका हुआ तब ब्रह्मा जी ने कहा कि आप में से जो सर्वस्रेष्ठ है वह स्वयं आ जाए मैं इसकी अर्ग उसे
समर्पित कर दूंगा अब कुछ देर तो सारे तीर्थ मौन रहे किसी ने कोई जवाब नहीं दिया परन्तु महीं जागर तीर्थ
ले कहा कि मैं ही सबसे महान हूं और वह आज आ गया और उसने यह तो कह दिया कि मैं महान हूं यह तो यहां तक
तो सत्ति था परन्तु उससे भी एक गल्ती हो गई उसने क्या किया कि यह सारे तीर्थ मेरे करोडवे हिस्से
परागर भी महान नहीं है यह ऐसा अपशब्द सुनने की वजह से वहां पर धर्म ने तुरंत उठ करके मही सागर तीर्थ को यह श्राब दिया कि जाओ तुम्हें मैं स्तंबित करता हूं आज के बाद तुम्हारी कोई पूजा नहीं करेगा कोई आराधना नहीं करेगा ऐसा �
श्राब धर्म में उन्हें दे दिया. अब मही सागर तीर्थ का अभिमान चूर-चूर हो गया. पहले
तो क्या था? श्राब मिल जाता था. लोग सुधर जाते थे. कल योग में श्राब की
दुकान बंद हो गई है. हम कितना भी सामने आले हो? गाली देदो. कुछ किसी
के पुत्र हैं, उन्हें हम कार्तिके भी कहते हैं, तो कार्तिके देवताओं के सेनापती थे, तो वो आये और धरम को कहा, अरे भाई आपने क्यों इसको श्राब दे दिया, इसने सही तो कहा है कि ये स्रेष्ट है, क्योंकि मही सागर तीर्थ में इंद्र धुमान नाम के एक र
तपस्या की, कि सारी धर्ती को पानी बना दिया, इसलिए इसे मही सागर कहा जाता है, जहाँ पर माटी और सागर का मेल हो, आज भी हमारे अगर आप ग्लोब को देखोगे, तो ग्लोब के अंदर 70% आपको पानी मिलेगा, सिर्फ 30% ही लैंड है, ये नासा ने भी साबित किय
है कि भाई, और वो पानी कैसे टिका है, गृत्वाकर्षन की शक्ती से टिका है, जिसे शेश भगवान धारण करते हैं, तो अब ये मही सागर तीर्थ की ऐसी दिव्य महीमा थी, जिसे श्राप की वज़े से शांत हो जाना पड़ा, अब अर्जुन ने कहा, कि अरे प्रभ�
कार्तिकेजी ने कहा, कि हे धरम तुमने गलत किया, आप किसे कुछ वरदान दे दो, इसने कुछ गलत नहीं किया, ठीक है इसने गलत बात बोल दी है, लेकिन ये श्राप के योग ये कदा भी नहीं है, तब उस समय सकंद पुराण के कार्तिकेजी ने ये वरदान मही सागर �
तीर्थ को दिया, कि शनीवार की अमावस्या के दिन, यदि कोई जा करके मही सागर तीर्थ में स्नान करता है, तो उसके करोडों जन्मों के पाप नश्ट हो जाएंगे, यदि कोई प्रयाग में जा करके आठ बार स्नान करे, यदि कोई पुषकर में जा करके साथ बार स्ना
सुनां करें और यदि कोई प्रभाग क्षेत्र में जाकर के 10 बार सुनां करें तो उसका जितना पुण्यफल
प्राप्त होगा उतना पुण्यफल केवल एक बार महि सागर क्षेत्र में सुनान करने से प्राप्त होगा
अब जैसे ही यह वर्दान मिला महीं सागर तीर्थ बहुत प्रसन्न हुए परंतु श्राप नहीं हटा तब कार्थिकेजी ने कहा कि एक ऐसा भक्त आएगा गोविंद का जो वहां पर तपस्या करेगा और उस तपस्या के बाद तुम्हारे इस श्राप की मुक्ति होगी
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V.A
Uploaded byThe Orchard
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