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V.A
Manushya Apne Bhagya Ko Kis Tarah Sudhaar Sakta Hai

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इसलि बेटों की चिंता भी मत करो बेटियों की चिंता भी मत करो
जब मैं साधू बनने लगा तो
मेरे गाउं की लोग बहुत सोस्ते थे यब ये भीक मांगेगा
मेरे पिताजी कहते थे भीक मांगते मिल गए तो गोली मार दूँगा
हमने का बंदोखो गोली शाथें में दे तो
हम खुद मार लेंगे तुम क्यों हत्यक पाप लोगे
भीक वे माँगते हैं जो भरस्ट होते हैं
भीक वे माँगते हैं जिनके पाँच चिरितर ही नहीं
भीक वे माँगते हैं जो आलसी
मकार खूचड होते हैं
भीक वह मांगते हैं, जिनने में दुरुगुण होते हैं
और याद रखना, जिसके पास
सद्गुण की संपदा है, सदाचार की संपदा है
चरितर की संपदा है
वैराग की दौलत है और विवेक का गुण है
वो आदमी भीक नहीं मांगता है
पुरी दुनिया को शीक भाटता है
भूलिए शाद गुरुदिव की जय
भीख मांगने की क्या जरूरत है
भैया दे दो प्पेशा
भैया
पेट बजाओ तबला जैसे
भैया
तुम्हारा पेटी कभी नही बड़ा
पेट बजाते घूम रहे हो जहाँ देखो ताँ बीख मांग रहे हो
बीख मांगने की जरूरत नहीं है
एक भी दुर्गुण आपके अंदर जब नहीं रह जाता है
तो केवल सवभागी की सुरज को उदे होने का उशर भिलता है
कोई प्रकार की जब आदत नहीं रह जाती है
सारे बेशन बुराई छूट जाती है
तो याद रखना आपका भागी सवभागी में बदलना शुरू हो जाता है
भगवान किसी के भागी को न बिगाडता है
न बनाता है, न बदलता है, न कुछ करता है
आपको कर्म करने की शक्ति भगवान ने दिया है
अपने कर्म की कुझी से ही भाग़ी का ताला तुम खोल सकते हो
अपने भाग़ी को बदल सकते हो
भाग़ी को बिगार सकते हो
भाग़ी को शुधार सकते हो
भाग़ी को चमका सकते हो
बस पांच चीजों पर तुमको ध्यान देना होगा
नमबर एक बानी समल कर बोलिये
बोलने की कला सीखिये
क्यों नहीं सीखते बोलने कला
क्यों बुदुर बुदुर बोलते हो
क्यों खुदुर बुदुर करते हो
म्यूं क्यों करते हो
गडबड सडबड क्यों बोलते हो
हल्ला क्यों मचाते हो
चिल्ला चोट क्यों मचाते हो
ठीक ठा क्यों नहीं बोलते हो
पढ़ते क्यों नहीं हो
पढ़ाई क्यों नहीं करते हो
चार पांच इसलोक भी नहीं याद है
एक हमारे पास में नेता जी आय बोले
इसलोक है चौपाई है
दोहा है रामाइन है वीजक है
जब अपने भाषन के बीच में दो चार चौपाई बोलते हो
एक अधी कहानी सुना देते हो
एक दो इसलोक बोल देते हो
तुमारे भाषन का स्रंगार हो जाता है
स्रंगार
भाषण को भी शरंगारित करना पड़ता है। जैसे लेडीज के 16 शरंगार होते हैं। यह तो बहुत महान लेडीज हैं,
जो दो-चार शरंगार ही करती हैं। यह 16 शरंगार करें तो 16 घंटा लगेंगे। तो पती जी भोजन बनाई, वर्तन मां जय
श्रंगार ही चलता रहेगा और यह तो बहुत सीधी साधी भोली-भाली है मैनावति यह तो कोई श्रंगार वंगार नहीं
खाली टिकली टप से मार दिया वोट में लाल रंग माला और बस निकल पड़ी जेहराम जी की हो गए श्रंगार ने नारी के
हिस्ते गेरा रे पांकी की बजार में और कि मामूरी स्टंग में व कि व बहुत मजा जाता है मैं तो मजेदार प्रवचन
करता था यह किसी सीखता ही प्रवचान इसमें क्या सीखना दूसरी निर्काल करना नकल बंदर करता है कि हम
दिवान अदमी किसी नकल नहीं करता, जिसके अकल है वो अपनी अकल से प्रवचन देता है, नकल करे वो बंदर है, नकल करोगे तो पीटे भी जाओगे, नकल करना है.
मनश का सरंगार क्या है
सदाचार
शदगुण
सैयम नियम ही तुम्हारा सरंगार है
प्रेम
मृदू भासा
कोमल सैली
ये तुम्हारी बाणी का सरंगार है
शदकर्म
सुबकर्म
पुन्यकर्म
ये तुम्हारी कर्मों का सरंगार है
शंदर विहार
मधुर विहार
पवित्र विहार
निरमल विहार
निश कपट विहार
ये तुम्हारी विहार का सरंगार है
जिसके साथ एक बार कपट करूगे
तुमसे दूँगे
दूर हो जाएगा धीरे-धीरे सब दूर हो जाएंगे केवल कपटी तुम अकेली रह जाओगे इसलिए निश कपट व्यवहार करो लंपट
व्यवहार न खटपट व्यवहार भूल थोड़ी दिन दोस्ती फिर दूसरी बहुत जल्दी नाराज भी में कितने लोगों की गुस्सा तो
इतना नाक के नोक पर रखी रहती है नाक के नोक पर बिल्कुल थोड़ा ऊपर हो तो थोड़ा देर माय घर की बिल्कुल
नोक पर रखते हो मंग मंग मंग हुं अरे प्रीति किया है प्रेम किया है रिष्ता जोड़ा है संबंध जोड़ा है
सबात ब्यूहार बना है, थोड़ा गम खाना भी सीखो इतना जल्दी कैसे तोड़ रहे हो प्रेम्यूहार, खेल-तमासा समझ रखा
क्या इसको, पृति करो निर्भाह करो अनृति करो अब ही कहना है, अब बाढ़ी के प्रीतिय ःत्थाह भई कि तब दुख सुक्ष and happiness
अब शुरुवात किया समधी बने बीच हम लमधी बन गए, क्यों बन गए, पतनी बनी हो बीच में पता नहीं कहां पूद कर भाग गई तो, अब वहां कोर्ट में खड़ी हो, बोलती हो कि अब तलाक दूँगी, अरे गम खाले लली देवी वापस आजा इदर बेट,
चेला बने भी धमेला बनाते हो, सहन सकती नहीं है, शादू लाइन में भी सह लेना चाहिए, गम खाले नहीं है, निभना और निभाना सीखो, ऐसा व्यवहार होना चाहिए,
अगर पतनी बन गई हो, हजार दुखों को सह करके मुश्कराना सीखो, और अपने पती को चलाना निभाना सीखो, ये कोई खेल तमासा है, कि रात में पती पतनी बने और दिन में फिर दुश्मन बन के खड़े, नहीं ऐसा कभी नहीं होना चाहिए,
क्या सीता जी से गलती नहीं हुई थी? क्या राम ने उनको छमा नहीं किया था? चूक तो सभी से हो जाती है, भूल तो सभी से हो जाती है,
इस माया मोह के जंगल में बड़े बड़े बुद्धिमान भी भूल चूख कर देते हैं
लेकिन छमा करना आपके हाथ में है और आपसे भूल हो जाए तो छमा मांगना भी आपके हाथ में
विवहार निभाते रहे
जब मैं साधू बनने लगा तो
मेरे गाउं की लोग बहुत सोस्ते थे यब ये भीक मांगेगा
मेरे पिताजी कहते थे भीक मांगते मिल गए तो गोली मार दूँगा
हमने का बंदोखो गोली शाथें में दे तो
हम खुद मार लेंगे तुम क्यों हत्यक पाप लोगे
भीक वे माँगते हैं जो भरस्ट होते हैं
भीक वे माँगते हैं जिनके पाँच चिरितर ही नहीं
भीक वे माँगते हैं जो आलसी
मकार खूचड होते हैं
भीक वह मांगते हैं, जिनने में दुरुगुण होते हैं
और याद रखना, जिसके पास
सद्गुण की संपदा है, सदाचार की संपदा है
चरितर की संपदा है
वैराग की दौलत है और विवेक का गुण है
वो आदमी भीक नहीं मांगता है
पुरी दुनिया को शीक भाटता है
भूलिए शाद गुरुदिव की जय
भीख मांगने की क्या जरूरत है
भैया दे दो प्पेशा
भैया
पेट बजाओ तबला जैसे
भैया
तुम्हारा पेटी कभी नही बड़ा
पेट बजाते घूम रहे हो जहाँ देखो ताँ बीख मांग रहे हो
बीख मांगने की जरूरत नहीं है
एक भी दुर्गुण आपके अंदर जब नहीं रह जाता है
तो केवल सवभागी की सुरज को उदे होने का उशर भिलता है
कोई प्रकार की जब आदत नहीं रह जाती है
सारे बेशन बुराई छूट जाती है
तो याद रखना आपका भागी सवभागी में बदलना शुरू हो जाता है
भगवान किसी के भागी को न बिगाडता है
न बनाता है, न बदलता है, न कुछ करता है
आपको कर्म करने की शक्ति भगवान ने दिया है
अपने कर्म की कुझी से ही भाग़ी का ताला तुम खोल सकते हो
अपने भाग़ी को बदल सकते हो
भाग़ी को बिगार सकते हो
भाग़ी को शुधार सकते हो
भाग़ी को चमका सकते हो
बस पांच चीजों पर तुमको ध्यान देना होगा
नमबर एक बानी समल कर बोलिये
बोलने की कला सीखिये
क्यों नहीं सीखते बोलने कला
क्यों बुदुर बुदुर बोलते हो
क्यों खुदुर बुदुर करते हो
म्यूं क्यों करते हो
गडबड सडबड क्यों बोलते हो
हल्ला क्यों मचाते हो
चिल्ला चोट क्यों मचाते हो
ठीक ठा क्यों नहीं बोलते हो
पढ़ते क्यों नहीं हो
पढ़ाई क्यों नहीं करते हो
चार पांच इसलोक भी नहीं याद है
एक हमारे पास में नेता जी आय बोले
इसलोक है चौपाई है
दोहा है रामाइन है वीजक है
जब अपने भाषन के बीच में दो चार चौपाई बोलते हो
एक अधी कहानी सुना देते हो
एक दो इसलोक बोल देते हो
तुमारे भाषन का स्रंगार हो जाता है
स्रंगार
भाषण को भी शरंगारित करना पड़ता है। जैसे लेडीज के 16 शरंगार होते हैं। यह तो बहुत महान लेडीज हैं,
जो दो-चार शरंगार ही करती हैं। यह 16 शरंगार करें तो 16 घंटा लगेंगे। तो पती जी भोजन बनाई, वर्तन मां जय
श्रंगार ही चलता रहेगा और यह तो बहुत सीधी साधी भोली-भाली है मैनावति यह तो कोई श्रंगार वंगार नहीं
खाली टिकली टप से मार दिया वोट में लाल रंग माला और बस निकल पड़ी जेहराम जी की हो गए श्रंगार ने नारी के
हिस्ते गेरा रे पांकी की बजार में और कि मामूरी स्टंग में व कि व बहुत मजा जाता है मैं तो मजेदार प्रवचन
करता था यह किसी सीखता ही प्रवचान इसमें क्या सीखना दूसरी निर्काल करना नकल बंदर करता है कि हम
दिवान अदमी किसी नकल नहीं करता, जिसके अकल है वो अपनी अकल से प्रवचन देता है, नकल करे वो बंदर है, नकल करोगे तो पीटे भी जाओगे, नकल करना है.
मनश का सरंगार क्या है
सदाचार
शदगुण
सैयम नियम ही तुम्हारा सरंगार है
प्रेम
मृदू भासा
कोमल सैली
ये तुम्हारी बाणी का सरंगार है
शदकर्म
सुबकर्म
पुन्यकर्म
ये तुम्हारी कर्मों का सरंगार है
शंदर विहार
मधुर विहार
पवित्र विहार
निरमल विहार
निश कपट विहार
ये तुम्हारी विहार का सरंगार है
जिसके साथ एक बार कपट करूगे
तुमसे दूँगे
दूर हो जाएगा धीरे-धीरे सब दूर हो जाएंगे केवल कपटी तुम अकेली रह जाओगे इसलिए निश कपट व्यवहार करो लंपट
व्यवहार न खटपट व्यवहार भूल थोड़ी दिन दोस्ती फिर दूसरी बहुत जल्दी नाराज भी में कितने लोगों की गुस्सा तो
इतना नाक के नोक पर रखी रहती है नाक के नोक पर बिल्कुल थोड़ा ऊपर हो तो थोड़ा देर माय घर की बिल्कुल
नोक पर रखते हो मंग मंग मंग हुं अरे प्रीति किया है प्रेम किया है रिष्ता जोड़ा है संबंध जोड़ा है
सबात ब्यूहार बना है, थोड़ा गम खाना भी सीखो इतना जल्दी कैसे तोड़ रहे हो प्रेम्यूहार, खेल-तमासा समझ रखा
क्या इसको, पृति करो निर्भाह करो अनृति करो अब ही कहना है, अब बाढ़ी के प्रीतिय ःत्थाह भई कि तब दुख सुक्ष and happiness
अब शुरुवात किया समधी बने बीच हम लमधी बन गए, क्यों बन गए, पतनी बनी हो बीच में पता नहीं कहां पूद कर भाग गई तो, अब वहां कोर्ट में खड़ी हो, बोलती हो कि अब तलाक दूँगी, अरे गम खाले लली देवी वापस आजा इदर बेट,
चेला बने भी धमेला बनाते हो, सहन सकती नहीं है, शादू लाइन में भी सह लेना चाहिए, गम खाले नहीं है, निभना और निभाना सीखो, ऐसा व्यवहार होना चाहिए,
अगर पतनी बन गई हो, हजार दुखों को सह करके मुश्कराना सीखो, और अपने पती को चलाना निभाना सीखो, ये कोई खेल तमासा है, कि रात में पती पतनी बने और दिन में फिर दुश्मन बन के खड़े, नहीं ऐसा कभी नहीं होना चाहिए,
क्या सीता जी से गलती नहीं हुई थी? क्या राम ने उनको छमा नहीं किया था? चूक तो सभी से हो जाती है, भूल तो सभी से हो जाती है,
इस माया मोह के जंगल में बड़े बड़े बुद्धिमान भी भूल चूख कर देते हैं
लेकिन छमा करना आपके हाथ में है और आपसे भूल हो जाए तो छमा मांगना भी आपके हाथ में
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