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Mata Annapurna Ki Katha
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हम मन पूर्णामा की भक्तों कथा सुनाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
महादेव जी माता से जब भिक्षा पाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
रोग दोश हर नेती मा सब मंगल गाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महाँ
सब सुनो लगाते ध्यान
इस कथा की है पहचान
मिले मुहमाँ गावरदान
प्रिय भगतों हम आज आपको माता पार्वती के एक पावन रूप
माता अनपुर्णा की वृत कथा का वृतान सुनाने जा रहे हैं
प्रतिवर्ष मार्ग शीर्ष पूर्णिमा के दिन
सभी साधर देवी मा अनपुर्णा की अराधना जा रहे हैं
करते हैं धार्विक ग्रंथों के अनुसार मा अन्पुर्णा को अन्द की देवी माना गया है अतह इस दिन जो भी भग श्रद्धा भाव से माता की पूजा अर्चना करता है उसे मन बांचित फल मिलता है तो आए जानते हैं मा अन्पुर्णा की पावन गाधा
श्री गणेश जी लाज हमारी सदा तुम्हारी हाथ कोटिश नमन है प्रेमत नैका देना भगवन साथ
अन्पुर्णा माता भक्तों अन्धन की है माता
अपने भक्त जनों की ये तो भक्त
तो भाग्य विधाता अन्धन सुख संपत्ती माता भंडारे भरती
श्रेवधा भावस जो भी ध्याता किरपा मा करती
राचन काल में सूखा के कारण पड़ गया बड़ा काल
प्राणी जनों की बात को छोड़ो देव हुए बेहाल
भूख के कारण जीव सभी कोहराम मचाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महार सब सुनो लगा के ध्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुहमा गावरदान
बंजर भूमी हो गई सारे अनजल खतम हुआ
साधों संतों देव जनों को बड़ा ही दुख हुआ
फिर तो सब ही ब्रह्मा हरी के पास में आए हैं
धरती बंजर हो गई भगवन व्यथा सुनाए हैं
फिर तो ब्रह्मा हरीन शिव की महिमा गाई है
शरण में आए शिव शरण जाओ राह दिखाई है
शिव शंकर ही आपकी व्यथा पार लगाएंगे
वो तो कड़ कड़ वासी धरा उप जाओ बनाएंगे
फिर तो देव तरिशी मुनिक कैलाश पे जाते हैं
आवन कथा सुनाते हैं
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महार
सब सुनो लगाके ध्यान
इस कथा की है पहचान
मिले मुहमांगा वरदा
प्रिय जनों सभी देव रिशी मुनी
शिव की शरण में जातर अपना दुखडा सुनाते हैं
करुण वचन सुन शिव भोले स्वेम धरा पे आते हैं
और दुखडा सुनाते हैं
धरती का कुशलता पूर्वक निरिक्षन करते हैं
और सभी शरण में आए देवों, रिशियों तथा मुनी जनों की समस्या दूर करने का आश्वासन दिया
फिर क्या होता है आईए जानते हैं
शिव भोले ने एक भिक्षक का रूप बनाया है
मां गिर जाने अनपुर्णा फिर रूप को पाया है
भिक्षक रूप में भोले नाथ जी मां के दर आए
अनजल धन माता से फिर वो भिक्षा में पाए
भिक्षा जो भी पाई शिव फिर धरा पे आए है
सारी धरती के लोगों में फिर बटवाए है
फिर से धरती पर जीवन का हो गया था संचार
तब ही इस पुर्ण मदन को मनाने लगे है ये त्योहार
फिर अनपुर्णा मां की सब जैकार लगाते है
पावन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महार, सब सुनो लगाते ध्यान, इस कथा की है पहचान, मिले मुह मांगा वरदान
इसे महादेव की भगताब सुनो प्राचीन कथा, धनन्ज नाम का एक व्यत्ति काशी में रहता
नाम सुलक्षण पतनी का जो थे अतिही गुणवान
दनन्ज नाम का एक व्यत्ति काशी में रहता
दुख का कारण निर्धनता रहते वो तो परिशान
एक दिन पतनी बोलि पती से कुछ तो काम करो
बैठ गई ये बात तो मन में शिव का ध्यान धरो
शिव को प्रसन करने धनन्जय जपने लगा शिव नाम
भूखे प्यासे बीते दिवस काई खुश हो गए भगवान
अन्पुर्णा उसके कान में शिव कह जाते है पावन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महान सम सुनो लगाते घ्यान
इस कथा की है पहचान मिले मुह्माँ गावरदान
प्रिये भक्त जनों
शिव भोले भक्त धनन्जय के कान में
तीन बाल
अन पुर्णामा का नाम बोलकर चले जाते हैं
किन्तु वो समझ नहीं पाया कि ये शब्द किसने बोला
वे सोच में पड़ गया और उसने मंदिर के पुजारी को पूछा
किन्तु वे बोले कि भूखे रहने के कारण उसे अन ही दिखाई दे रहा है
जिस कारण उसकी ये हालत है वे अन्य लोगों से भी पूछता है
पर कोई भी नहीं बोला फिर आगे क्या होता है जानते हैं कथा के माध्यम से
घर जाकर के पतनी को फिर सारी बात बताई
ये मंत्र शिव ने दिया है पतनी उसे बतलाई
ये नाथ ये चिंता छोड़ो चिंता हर भगवान
शिव का ध्यान आप धरो तो शिव ही कर कल्यान
फिर तो धनन जैने भूले का ध्यान लगाया है
अजर अमर अविनाशी ने उसे मार्ग दिखाया है
अन पूर्णा नाम को जपता पूरब दिशा चला
फल खाता
और जल पीता फिर एक तला बुनला
दिव्यताल पर अपसराओं को वह पाते है
पावन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महाँ
सब सुनो लगाते ध्यान
इस कथा की है पहचान
मिले मुहमाँ गावरदा
भंग सनोवर तट अकसराई बैठी छुन्ड बलाए
मार्ग शीश की रात उजे
लिक्मान पुर्ण को द्याये
बास धनजय ने आकर फिर उनसे पूच लिया
उनसब ने फिर मान पुर्णा का वृत बता दिया
कब कैसे वृत करना है विधी बत लाई है
21 दिन या एक दिन वृत की विधी बत लाई है
कथा भिश्रवण करने से फल मिले
मिलता उतना ही श्रद्ध भावना हो हृदय में मिलती सुख संपत्ति अंधे नैना मुर्ख ज्ञान बाजन सुत पाते हैं आवन कथा सुनाते हैं महादेव भी माता से जब भेक्षा पाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महाद सब सुनो लगाते ध्यान इस कथा की है पहचान दिले मुहमाँ गावरदाद
प्रिये जनों अपसराओं से व्रत महिमा को सुन धनन्जै बोलें
हे बहनो मैं तो निर्धन हूँ मेरे पास सूत भी नहीं है क्या आप मुझे व्रत का सूत दोगी
अपसराएं बोली क्यों नहीं आपका मंगल हो मैं आपको व्रत का ये पावन सूत देती हूँ
व्रत का पावन सूत लेकर धनन्जय ने श्रद्धा भाव से व्रत पूर्ण किया फिर क्या हुआ आईए जानते हैं
व्रत पूरा होते ही ताल से सोन की सीडियाए
इक्किस खंड की स्वर्ण सीडिया पुन्य से है भाई
उतर सीडिया फिर तो धनन्जय एक मंदिर आए
कोट शसूर समान चमक मंदिर में है पाए
बैठी सिघासन मान पुन्ना शिवजी पास खड़े
देवंग नाए चवर डुलाती कई तहरदार खड़े
फिर तो उसने मा की चरणों को है पकड़ लिया
समझ गई मा उसकी विठा को है वरदान दिया
लिखा जिवा पर बीज मंत्र फिर ध्यान लगाते हैं
आवन कथा सुनाते हैं
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महा
सब सुनो लगाते ध्यान
इस कथा की है पहजान मिले मुहमा नावरदान
मा की दया से ब्रामण ने फिर ज्ञान को पाया है
काशी विश्वनाथ मंदिर में स्वयम को पाया है
ये मान पुर्णा की भक्तों सब लिला थी
मंगल जीवन हुआ मिटी जो उनकी पीडा थी
धन धन से हो संपन हो गई बड़े अमीर
मा की दया कृपा उनकी बदल गई तकदी
देखिए
जैसे शहद के चत्ते पर मधुमक्खी होती जमा
वैसे ही सग्य सम्बन्धी वहां होने लगे जमा
आख दिखाते उनको वहां नजर में आते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ये कथा है बड़ी महान सब सुनो लगाके ध्यान इस कथा की है पहचान मिले मुहमागा वरदान
प्रिये भक्त जनों भक्त धनैंजे के घर उसके सगे सम्मंदियों का ताता लगने लगा
इतना बड़ा सुन्दर घर इतनी धन संपत्ती कौन होगा इसका वारिस उसके एक सम्मंदी ने उससे कहा
जी त्यान
कि उसकी पत्मी सुलक्षणा से कोई संतान ना हुई है
तो वो दूसरा विवाह कर ले
फिर क्या हुआ आईए जानते हैं
पत्मी सुलक्षणा को सातन का है
फिर दुख दिया
धीरे धीरे बीता समय फिर अगहन मास आया
पहली पत्मी सुलक्षणा ने आपती को बतलाया
हे नातमा के व्रत से ही ये सब आया है
आया व्रत का वो शुब दिन उसने बतलाया है
बात मान कर फिर तो धनन जे उसके घर
आया व्रत पूजन करने को उसने मां का ध्यान लगाया
समझ सकी ना नई पत्नी पति कहां पे जाते है
पावन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महा
सब सुनो लगाते
इश कथा की है पहचान निले मुहमाँ गावरदान
धीरे धीरे इरिशा की मन में ज्वाला दहक उठी
तीन दिवस बस शीश बचे थे उसको खबर पड़ी
धीरे धीरे इरिशा की मन में ज्वाला दहक उठी
फिर तुस लक्षण के घर पर वो सोतन आई है
आते ही भग तो फिर वो कहराम मचाई है
नए घर पर जा कर के धननजय को नित्राई
हाथ से व्रत का सूत तोड़ के पतनी फेकाई
जिस कारण से मान पुर्णा को है क्रोधाया
सब कुछ नष्ट कर दिया फिर उनको निर्धन बनाया
नए पतनी के कारण वो शापित हो जाते है
पावन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महार
सब सुनो लगा के ध्यान
इश्व कथा की है पहचान
मिले मुह्मा गावरणा
भक्त जनों नई बहु रूट कर अपने पिता के घर चली जाती है
सुनाते है बड़ी महार
जो लक्षणा भी अपने पती को अपने पुराने घर पर ले आती है
और पती को मा अन्पुर्णा का श्रद्धा भाव से वृत्व पूजन करने को कहती है
धनन्जय ने मा अन्पुर्णा का श्रद्धा पूर्वक पूजन किया
पूर्व की भाती वही स्वर्ण सीडियां प्रकट हुई
माने दर्शन दिये
वेहमा के चरण पकड़कर शमायाचना माँगने लगा
मा प्रसन हुई फिर क्या होता है आईए जानते है
खुश हो करके माने स्वर्ण मूर्ती प्रदान करे
दिया वरदान पुत्र प्रात से गोधी हरी भरी
इसे मूर्ती की पूजा अर्चना तुम तो सदा करना
जूट कपट को छोड़ सदा सद बार्ग पही चलना
मा की दया से एक पल में वो मंदिर में आए
व्रत को पूर्ण किया उन्होंने पुत्र है वो पाए
सारी नगर में अच्रज की लहरे है दोड़ गई
में संतान सेट के घर में सूच संतान हुई
फिर तु धनन जेमान पुन्न का मंदिर बनाते है
आवन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महाद
सब सुनो लगाके ध्यान
इस कथा की है पहचान
मिले मुहमाँगा वरदान
धूमधाम से मंदिर में मा की प्रत्मा पधारे
यज्य हवन कर भक्तों ने फिर खुशी है उचारी
मंदिर के आचार का पद फिर तो वो पाए
नई पत्नी को भी फिर अपने घर पे बुलवाए
खुशी खुशी से फिर तो वो सब रहने है लगते
क्या है व्रत की पूजव दियाओ हम सब सुनते
स्नान द्यान कर मा का कलश स्थापित है करते
मा को चावल हल्दी कुम कुम अरपित है करते
धूप दीप नैवेद चढ़ा कर शीश जुकाते है
आवन कथा सुनाते है
महादेव भी माता से जब भिक्षा पाते है
हम कथा सुनाते है
ये कथा है बड़ी महान सब सुनो लगाते ध्यान
इस कथा की है पहचान दिले मुहमा गावरदान
मार्ग शीश माह मेह करते माका नुष्ठान
शृद्ध भाव से निर्धनों में करे भोजन कपड़ा दान
एकिस दिनों तक व्रत रखधन सुख यश वैभव पाते
आरती चाली सको पड़कर मंगल
आरती चाली सको पड़कर मंगल
आरती चाली सको पड़कर मंगल
आरती चाली सको पड़कर मंगल
आरती चाली सको पड़कर मंगल
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V.A
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