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Devesh Kundan
Narsingh Jayanti Ki Katha

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Lyrics
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प्रिये भक्तों प्रेम से बोलिये श्री नरसिंग भगवान की
शेयरी
भक्तों आज मैं आपके समक्ष भगवान श्री हरी के
नरसिंग अवतार की पावन कथा संनाने जा रहा हूं
जो कि भगवान श्री हरी विश्णु के रौज्ड्रा अवतार कहे जाते हैं
शुरी नरसिंग भगवाण का जनम प्रदोश काल में हुआ था
इसलिये इनकी पूजा संध्याकाली न होती है
हम शुरी विश्ण्वं भगवान को पहले शीष जुकाते हें
हम शीष जुकाते हें
श्री नर सिंघ अवथार की आपको क्फा शुनाते हैं
हमँ मह्मा गाते हें
हिरन् कա शबव, अभिमानी का अन्त हम नरेकुछnh
श्री नर शुम झडडवान कीआपको कफा शुनाते ह Snapchat
जैश्री विश्यों भगवान जैजैजै कृपा
निधान जैश्री हरी दयवान जैजैजै कृपा निधान
प्रिये भक्तों, महरसी कस्यप
तथा दिती का पुत्र था हिरन कस्यप और हिरन नाक्ष
उसका वद कर दिया था
इसी प्रतिशोद के कारण
हिरनकश्य भगवान विश्णू का
प्रबल विरोधी हो गया था
और बदला लेने के लिए
उसने ब्रह्मा जी की
कठिन तपस्चा की
और उन्हें प्रसंद कर लेता है
फिर क्या होता है
आईए कथा के माध्यम से जानते हैं
ब्रह्मा जी की कर के तपस्चा पाता है वरदाण
तथा अस्तु कहे देते हैं स्री ब्रह्म देव भगवान
क्या वर मांगा ब्रह्मा जी से तुम्हे बताते हैं
उसके हर एक शब्द का भक्तों सार बताते हैं
घर के बाहर में न मरू और न घर के अंदर
मोत न हो आकाश में मेरी न धरती अंदर
मरू न जल में मरू न थल में
मरू न मानव से
अस्त्र सस्त्र से मोत न हो न डानव न नरसे
श्री नारायन श्री हरि विश्ण की गाता
गाते हैं पवन कथा सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जै श्री विश्ण भगवाद जै जै जै क्रिपा निधाद
आकाश में न अगनी में न जल में और नहीं किसी अस्त्र सस्त्र से इसी वरदान
के कारण हिरन कस्चप एंकारी वन गया और वह स्वेम को अमर समझने लग गया
उसने अपने अमरत्तु के अभिमान में इंद्र का राज्य
छेन लिया और तीनों लोकों को प्रतारित करने लगा
ब्रह्मा जी से मिला जिस घड़ी मन चाहा वरदान
उसके मन के अंदर भक्तों जाग उठा शैतान
म्रत्यू का भैराहान उसको होने लगा अभिमान
हिरन कश्चप के सिर ऊपर चड़ बैठा अभिमान
तीनों लोकों में कोई नहीं है मुझसे बड़ा भगवान
वर मिलते ही
राजा से वो बन बैठा नादान
अहंकार और मुर्ख की भक्तों है तो यही पहचान
स्वेम से जादा नहीं समझते किसी को भी बलवान
इसके आगे क्या होता है वो बतलाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जैश्री विश्यों भगवान जैजैजै क्रिपर निधान
जैश्री हरी
प्रिये भक्तों हिरन निकश्चक को पता था
कि जिसने भी मृत्यूलोक में जन्म लिया है उसे मरना भी अवश्ची ही होगा
इसलिए उसने एक चाल सोची तथा भगवान ब्रह्माजी से ऐसा वर मांगा
जिससे वह अमरत्व को प्राप्त कर अविनासी
एवं ईश्वर की भाती शर्वशक्ती मान हो जाता
उसने अपने राज्ज़ में किसी भी प्रकार की पूजा पाथ को
प्रतीबंधित कर दिया और स्वेम को ही भगवान घोशित कर दिया
हीरन कश्षप स्वम को घोशित करता है भगवान
हीरन कश्षप को हो गया था भक्तों बहुत अभिमान
लीला देखो नारायन की अब क्या
होता है
Usske ghar mein ekh putr ka janm phir hota hain
जन्म भी उता है
नाम रखा प्रहलाद पुत्र का बजे न गाड द्धोल
प्रजा की खातिर राजा में तो डिया खजाना खोल
दिया खजाना खोल
थोड़ा बड़ा हुआ जब बेटा तो हुई
अनोखी बात
खिलीनष्णू स्री नारायन का नाम जपे दिन रात
नाँ जपे दिन रात
बडी
विलख्षन कथा आज मैं ये बतलाता हूँ
पावण कथा सुनाता हूं
श्रीनिरशिंग जेनकी की मैं महिमा गाता आओं
मैं कथा सुनाता हूं
जय जय जय क्रिपनिधान
जय श्री हनी दयमान
जय श्री नरसिंग नारायन
भगवान की प्रिय भक्तों
तभी प्रहलाद भी वहाँ पर आ जाता है
फिर क्या होता है
आईए कथा के माध्यम से जानते हैं
करने लगा श्री हरी की भक्ती
बालक वो प्रहलाद
श्री विश्णू श्री नरायन का नाम जपे दिन रात
हीरन कश्चप ने ये सुना तो किया क्रोध भारी
बुला की बेटे को बोला तेरी मती गई मारी
मैं ही हूँ तेरा पिता और मैं ही तेरा भगवान
श्री विश्णू का नाम जपे क्यूं ओ मुर्ख नादान
मेरी पूजा मेरी अरचना कर तू मेरा ध्यान
इसी में तेरा भला है बालक इसी में है कल्यान
क्या कहता है पिता से बेटा वो बतलाते हैं
हम सत्य बताते हैं
सरी नरसींग भजवान की आपको कता सुनाते हैं हम महिमा
गाते हैं
प्रहलाद ने वनम्रता पूर्वक
अपने पिता से कहा
पिताश्री आप मेरे जन्वदाता अवश्व हैं
परंतु भाग्य विधाता तो श्री हरी विश्णू भगवान ही हैं
आप मेरे पिता हैं महराज परंतु भगवान नहीं
पुत्र की बातों को सुनकर वो क्रोध से हो गया हलाल
म्यान से उसने तुरंत अपनी ली तलवार निकाल
हम नर है वो है नारायन सर्वे स्वर्भगवान
आपके मन में बैठ गया है पिता श्री अज्ञान
इसके आगे क्या होता है वो बतलाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
श्री नरसिंग भगवान की आपको कता सुनाते हैं हम महिमां गाते हैं
जय श्री हरी हिरन निकशप प्रहलाद को मारने के लिए खंबे से
बंधवा देता है और कहता है आज देखता हूँ तुझे बचाने कौन आता है
या तो मुझे भगवान मालो या फिर अपने प्रान गवाने हेतू
तयार हो जाओ
प्रश्नात कहता है आपको जो भी करना हो अवस्य कीजे पिताश्री
लेकिन मुझे परमपिता परमिश्वर श्री हरी विश्नु भगवान
पर पुर्ण विश्वास है कि वो मेरी रक्षा हेतू अवस्य आएंगे
हिरन कश्चप क्रोध में आज बबूला हो जाता है और क्रोध में
भरकर तलवार लेकर हिरन कश्चप उस पर वार करने को दोड़ता है
तभी भयंकर सिंग गरजना के साथ खंबे को फाड कर
भगवान श्री हरी नरसिंग रूप में प्रकट हो जाते हैं
नरसिंग भगवान की श्री हरी नरसिंग
गरजना हुई भयंकर खंबे के अंदर
खंबा पाड के नरसिंग रूप में निकले हरी बाहर आदा तन है नर के रूप में
आदा सिंग स्वरूप
जो
आंदी छाया हो शीतल आदी तपती धूप
हिरन कश्चप को है उठाया रखा बीच दहलीज
पटक लिया जागों के ऊपर उसकी गरदन खीच
गोधूली की बेला थी ना दिन था और ना रात
ना घर में ना घर के बाहर ना ही धरा आकाश
हात जोड के खड़ा भक्त प्रहलाद दिखाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
स्री नरसिंग भगवान की आपको कथा सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जै श्री विश्यों भगवान जै जै जै कृपा निधान
जै श्री हली दयवान जै जै जै कृपा निधान
नरसिंग भगवान खंबा को फाड कर प्रकट हो जाते हैं
और हिरन कश्यब को अपनी जंगा पर लिटा कर बोलते
हैं ओ अहंकारी दुष्ट अपने वर्दान को याद कर
ये दिन है और न रात न ये धरती है और न आकास न घर के अंदर और
न घर के बाहर और अपने नाकुनों को दिखा कर बोले ये न तो
अस्तर है और नहीं शस्त दुष्ट अब तुम मरने के लिए तयार हो जाओ
अपने स्वेम के रूप में आकर चले गए जगदीश
हुआ राज खुशि हाल ये सारे हो रही जैज़य कार
जैज़य हो प्रहलाद तुमारी जैज़य हो राजकुमार
जैज़य हो राजकुमार
बोलो सारे मिलके जय जय श्री हरी
हात जोड देवे सकुंडन कता सुनाते हैं
कैला संगीत बनाते हैं
स्री नरसिंग जयंपी की हम कता सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जय जय जय खिपन धान जय श्री हरी गयवान जय जय जय खिपन धान
शेयरी
भक्तों आज मैं आपके समक्ष भगवान श्री हरी के
नरसिंग अवतार की पावन कथा संनाने जा रहा हूं
जो कि भगवान श्री हरी विश्णु के रौज्ड्रा अवतार कहे जाते हैं
शुरी नरसिंग भगवाण का जनम प्रदोश काल में हुआ था
इसलिये इनकी पूजा संध्याकाली न होती है
हम शुरी विश्ण्वं भगवान को पहले शीष जुकाते हें
हम शीष जुकाते हें
श्री नर सिंघ अवथार की आपको क्फा शुनाते हैं
हमँ मह्मा गाते हें
हिरन् कա शबव, अभिमानी का अन्त हम नरेकुछnh
श्री नर शुम झडडवान कीआपको कफा शुनाते ह Snapchat
जैश्री विश्यों भगवान जैजैजै कृपा
निधान जैश्री हरी दयवान जैजैजै कृपा निधान
प्रिये भक्तों, महरसी कस्यप
तथा दिती का पुत्र था हिरन कस्यप और हिरन नाक्ष
उसका वद कर दिया था
इसी प्रतिशोद के कारण
हिरनकश्य भगवान विश्णू का
प्रबल विरोधी हो गया था
और बदला लेने के लिए
उसने ब्रह्मा जी की
कठिन तपस्चा की
और उन्हें प्रसंद कर लेता है
फिर क्या होता है
आईए कथा के माध्यम से जानते हैं
ब्रह्मा जी की कर के तपस्चा पाता है वरदाण
तथा अस्तु कहे देते हैं स्री ब्रह्म देव भगवान
क्या वर मांगा ब्रह्मा जी से तुम्हे बताते हैं
उसके हर एक शब्द का भक्तों सार बताते हैं
घर के बाहर में न मरू और न घर के अंदर
मोत न हो आकाश में मेरी न धरती अंदर
मरू न जल में मरू न थल में
मरू न मानव से
अस्त्र सस्त्र से मोत न हो न डानव न नरसे
श्री नारायन श्री हरि विश्ण की गाता
गाते हैं पवन कथा सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जै श्री विश्ण भगवाद जै जै जै क्रिपा निधाद
आकाश में न अगनी में न जल में और नहीं किसी अस्त्र सस्त्र से इसी वरदान
के कारण हिरन कस्चप एंकारी वन गया और वह स्वेम को अमर समझने लग गया
उसने अपने अमरत्तु के अभिमान में इंद्र का राज्य
छेन लिया और तीनों लोकों को प्रतारित करने लगा
ब्रह्मा जी से मिला जिस घड़ी मन चाहा वरदान
उसके मन के अंदर भक्तों जाग उठा शैतान
म्रत्यू का भैराहान उसको होने लगा अभिमान
हिरन कश्चप के सिर ऊपर चड़ बैठा अभिमान
तीनों लोकों में कोई नहीं है मुझसे बड़ा भगवान
वर मिलते ही
राजा से वो बन बैठा नादान
अहंकार और मुर्ख की भक्तों है तो यही पहचान
स्वेम से जादा नहीं समझते किसी को भी बलवान
इसके आगे क्या होता है वो बतलाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जैश्री विश्यों भगवान जैजैजै क्रिपर निधान
जैश्री हरी
प्रिये भक्तों हिरन निकश्चक को पता था
कि जिसने भी मृत्यूलोक में जन्म लिया है उसे मरना भी अवश्ची ही होगा
इसलिए उसने एक चाल सोची तथा भगवान ब्रह्माजी से ऐसा वर मांगा
जिससे वह अमरत्व को प्राप्त कर अविनासी
एवं ईश्वर की भाती शर्वशक्ती मान हो जाता
उसने अपने राज्ज़ में किसी भी प्रकार की पूजा पाथ को
प्रतीबंधित कर दिया और स्वेम को ही भगवान घोशित कर दिया
हीरन कश्षप स्वम को घोशित करता है भगवान
हीरन कश्षप को हो गया था भक्तों बहुत अभिमान
लीला देखो नारायन की अब क्या
होता है
Usske ghar mein ekh putr ka janm phir hota hain
जन्म भी उता है
नाम रखा प्रहलाद पुत्र का बजे न गाड द्धोल
प्रजा की खातिर राजा में तो डिया खजाना खोल
दिया खजाना खोल
थोड़ा बड़ा हुआ जब बेटा तो हुई
अनोखी बात
खिलीनष्णू स्री नारायन का नाम जपे दिन रात
नाँ जपे दिन रात
बडी
विलख्षन कथा आज मैं ये बतलाता हूँ
पावण कथा सुनाता हूं
श्रीनिरशिंग जेनकी की मैं महिमा गाता आओं
मैं कथा सुनाता हूं
जय जय जय क्रिपनिधान
जय श्री हनी दयमान
जय श्री नरसिंग नारायन
भगवान की प्रिय भक्तों
तभी प्रहलाद भी वहाँ पर आ जाता है
फिर क्या होता है
आईए कथा के माध्यम से जानते हैं
करने लगा श्री हरी की भक्ती
बालक वो प्रहलाद
श्री विश्णू श्री नरायन का नाम जपे दिन रात
हीरन कश्चप ने ये सुना तो किया क्रोध भारी
बुला की बेटे को बोला तेरी मती गई मारी
मैं ही हूँ तेरा पिता और मैं ही तेरा भगवान
श्री विश्णू का नाम जपे क्यूं ओ मुर्ख नादान
मेरी पूजा मेरी अरचना कर तू मेरा ध्यान
इसी में तेरा भला है बालक इसी में है कल्यान
क्या कहता है पिता से बेटा वो बतलाते हैं
हम सत्य बताते हैं
सरी नरसींग भजवान की आपको कता सुनाते हैं हम महिमा
गाते हैं
प्रहलाद ने वनम्रता पूर्वक
अपने पिता से कहा
पिताश्री आप मेरे जन्वदाता अवश्व हैं
परंतु भाग्य विधाता तो श्री हरी विश्णू भगवान ही हैं
आप मेरे पिता हैं महराज परंतु भगवान नहीं
पुत्र की बातों को सुनकर वो क्रोध से हो गया हलाल
म्यान से उसने तुरंत अपनी ली तलवार निकाल
हम नर है वो है नारायन सर्वे स्वर्भगवान
आपके मन में बैठ गया है पिता श्री अज्ञान
इसके आगे क्या होता है वो बतलाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
श्री नरसिंग भगवान की आपको कता सुनाते हैं हम महिमां गाते हैं
जय श्री हरी हिरन निकशप प्रहलाद को मारने के लिए खंबे से
बंधवा देता है और कहता है आज देखता हूँ तुझे बचाने कौन आता है
या तो मुझे भगवान मालो या फिर अपने प्रान गवाने हेतू
तयार हो जाओ
प्रश्नात कहता है आपको जो भी करना हो अवस्य कीजे पिताश्री
लेकिन मुझे परमपिता परमिश्वर श्री हरी विश्नु भगवान
पर पुर्ण विश्वास है कि वो मेरी रक्षा हेतू अवस्य आएंगे
हिरन कश्चप क्रोध में आज बबूला हो जाता है और क्रोध में
भरकर तलवार लेकर हिरन कश्चप उस पर वार करने को दोड़ता है
तभी भयंकर सिंग गरजना के साथ खंबे को फाड कर
भगवान श्री हरी नरसिंग रूप में प्रकट हो जाते हैं
नरसिंग भगवान की श्री हरी नरसिंग
गरजना हुई भयंकर खंबे के अंदर
खंबा पाड के नरसिंग रूप में निकले हरी बाहर आदा तन है नर के रूप में
आदा सिंग स्वरूप
जो
आंदी छाया हो शीतल आदी तपती धूप
हिरन कश्चप को है उठाया रखा बीच दहलीज
पटक लिया जागों के ऊपर उसकी गरदन खीच
गोधूली की बेला थी ना दिन था और ना रात
ना घर में ना घर के बाहर ना ही धरा आकाश
हात जोड के खड़ा भक्त प्रहलाद दिखाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
स्री नरसिंग भगवान की आपको कथा सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जै श्री विश्यों भगवान जै जै जै कृपा निधान
जै श्री हली दयवान जै जै जै कृपा निधान
नरसिंग भगवान खंबा को फाड कर प्रकट हो जाते हैं
और हिरन कश्यब को अपनी जंगा पर लिटा कर बोलते
हैं ओ अहंकारी दुष्ट अपने वर्दान को याद कर
ये दिन है और न रात न ये धरती है और न आकास न घर के अंदर और
न घर के बाहर और अपने नाकुनों को दिखा कर बोले ये न तो
अस्तर है और नहीं शस्त दुष्ट अब तुम मरने के लिए तयार हो जाओ
अपने स्वेम के रूप में आकर चले गए जगदीश
हुआ राज खुशि हाल ये सारे हो रही जैज़य कार
जैज़य हो प्रहलाद तुमारी जैज़य हो राजकुमार
जैज़य हो राजकुमार
बोलो सारे मिलके जय जय श्री हरी
हात जोड देवे सकुंडन कता सुनाते हैं
कैला संगीत बनाते हैं
स्री नरसिंग जयंपी की हम कता सुनाते हैं
हम महिमा गाते हैं
जय जय जय खिपन धान जय श्री हरी गयवान जय जय जय खिपन धान
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