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Padmini Rani Bhag 1
Bharat Shastri
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Lyrics
Uploaded by86_15635588878_1671185229650
जए जए जए
मायंबिके
जग की पालन हा।
चरड़ सरड़ रजदीजियो
करदो मायुधा।
दोस्तो एक डाल पर
तोताने और मेना में बाते हो रही हैं
और बड़ी ही रोचक कहानी है,
बड़ा ही पवित्र तिहास है राणी पदवनी का बनवास
आरे एक डाल पर दोनों बैठे रे तोताने गिरा युच्छादी
युच्छादी
युच्छादी
युच्छादी
एक डाल पर तोता और मेना बैठे हैं
और बड़ी प्रेम से सच्चन चल रहा है
आईए
बात रे जसी कट जाए राती हमारी
महराज की मेना कहने लगी समझाए
यारो यतनी कहके मेना लेन से नीर बहाई रही है
यारो यतनी कहके मेना लेन
से नीर बहाई रही है
डाल पर तोता और मेना में सच्चन चल रहा है तोता
कहता है कि मेना कोई ऐसी बात कहो जिससे रात कट जाए
तो मेना
बोली
रात तो कटी जाएगी कुछ नहीं कहेंगे तो भी
अगर तमारी इच्छा है तो सुनने की तो सुनो
पुरुष जाती से बेवफाई इस दुनिया में कोई जाती
नहीं होती है तोता बोला ठीक कही यानि अपरे परिवार
की बात सवे सुभाती है और अते खराब नहीं होती है
मेना बोली
कि पुरुषों से ज़्यादा इस्त्रियां कभी खराब नहीं होती है
तो तोता
बोला कोई बात हो तो बताओ बोला सुनो
का बैठी गओ तोई गम
ब्यारी लग गई बीमारी
अरे काई कु नाराज है
ज़्ये बता मैं ही तिरो पती हूँ को मोते पहले एक आदम और थो
सोतो मैं पती विरता हूँ तो फिर तुझे क्या धक्का लगाए जो तु रो रही है
क्या बात है
अरे कहियो मेरा समझाके तो एक सादव सुनाई बैठी जा बास मेरे आखे
क्या बात है देवराज
के तो को किस्सा समझाऊँ
अरे बेवफा
कसम की कहानी तो को समझाऊँ
कि बारत गाई सुनाते हैं कि बारत गाई सुनाते हैं अरे
बिल्ली के द्वारा राथ और कैसिट में अवो गाते हैं
अरे तोता एक महराद है
सौमदत
उनकी पदमिनी नामक एक बोह सुन्दर राणी है वो बोह सुन्दर भी है
और साथ साथ ये ध्यान देना एक ही नहीं है अनेक राणी महलों में हैं
तोता बोलो हरी मेना कानी इस तेने शुरूनाई
करी ता ते पहले ही टपपाई टपपाई आसु बाहरी है
यहनी कोई गडबड है गडबड तो बहुत बुरी है
भईया लकी भरी के मेना अब तोता से कही रही है
देवराजी लकी भरी के मेना अब तोता से कही रही है
प्यारी रो मत पहले तू सारा बरतान तो मुझे बता अखरकार
यह सब पुर्शों के परती तेरे नदर इतनी नफरत क्यों है
है
बात क्या है
महराज सौम्दत महराज की पत्मी है जिनका
नाम है पदवणी और पदवणी बहुत चुन्दर है
एक दिन अनन्ड राणियों की अपेच्छा महराज
की प्रीत प्रेम पदवणी में रहता है
क्योंकि पदवणी के करणी में और कथन में कोई अंतर नहीं है बहुत चुनदर है
कि राजा राणी उपवल में थे और उपवल की
सौभान्यारी है
एक दिन दोनों पत्पत्नी का जोड़ा
बागों में हैं
तोता बोला
सौम्दत्त और पदवणी का बोले हाँ
आगे बत शुनों
सुनो
महराच
मिया और वीवी जिस वगिया में ब्रह्मण कर रहे हैं
बड़ा ही सुहावना मौसम है
बोत अच्छी अच्छी हवा चल रहे हैं
बोत अच्छी अच्छी पच्छी ब्रहमण कर रहा हैं
आगी
यह एक डाल पे दो
पची बे थे
की राजानी गिरा सुनाई है
की बतला ओगी इन्हें क्या कहे पे
कहकरी की गए
मुस्खाई है
हे महराज
दोनों पत-पतनी प्रेम की बाते कर रहे हैं
पेड के नीचे बेट करके
तो जिस पेड के नीचे बेटे हैं उस पेड पर एक जोडा बैता है
जैसे हमारा तुमारा जोडा है
पोता मैं नाका। पोता बोल है २ नहीं।
तो कभूतर और कभूतरी हैं
बोला ये अच्छा
तुम्हें कैसे मालों है?
बोले इसी का तो जगडा है।
कभूतर कभूतरी?
बेहा!
किराली बोली है प्राड़ेनात्व
इन सबी कभूतर कहते हैं
जैसे हम प्यार करें राजा
बोले महराज ये कभूतर है और एक समय हो सकता है कि कभूतरी हो
राजा जी कहने लगे अच्छा?
राजा जी कहने लगे सुनो महामिनी चितलाई
आरे नरमादा लगते नहीं नरदो दिखलाई
तुम कहती हो कभूतर और कभूतरी हैं
लेकिन मैं कहता हूँ कि ये दोनों ही कभूतर हैं
कि ऐसा नहीं है प्राड़ पती सुनो हमारी बात
पति पति नहीं दो जीव हैं रहें हमेशा सात
तुमें ये कभूतर कभूतर लगते हैं लेकिन महाराज ये कभूतर और कभूतरी हैं
रष्ते में ये दोनों मुझे पत पत नहीं लगते हैं
राजा बोले तुम हमसे ज़्यादा बुद्ध्यमान होई
महाराज मैं तुमसे ज़्यादा बुद्ध्यमान तो नहीं हूँ पर
ये मेरा अनभव है और मेरा अनभव कभी गलत नहीं होता है
के राजा बोले हे प्राण प्रिये
अरे भाईया
और ध्यान देना देवराज हर जगहें लड़ाई की कोई बज़य होगी
दिक्के धर्ती पर ये दो प्राणी ऐसे हैं पते
और पतनी इनकी लड़ाई की कोई बज़य नहीं होती है
के राजा बोले हे
प्राण प्रिये और हम दोनों सरत लगाईंगे
को जीते गो,
को हारे गो तब यागे बात बढ़ाईंगे
देवेश
की राणी बोले हे प्राण नाख के तुम क्या सरती लगाओगे
क्या सरत लगाओगे
के हम तुम दोनों सरत लगाते हैं
कि तुम तो कह रही हो गे पत पतनी हैं नर और मादाईं
कि ये दोनों नरी हैं
तो राणी बोली महराईस सरत लगा लो कि मैं अपना बच्चन निमहाओंगी तुम
रागा बोले सरत क्या है वो मैं रखता हूँ सुनो
बताओ
अगर ये दोनों नर मादा होते हैं
तो मैं बनवास को चला जाओंगा तुम जीत जाओंगी
यदि ये दोनों नर ही नर होते हैं तो मैं तुमें बनवास पठाओंगा मनजूर है
यदि ये नर मादा होते हैं
तो मैं बनवास को जाओंगा
यदि दोनों ही ये नर निकलें
तुम जीत जाओंगा तुम जीत जाओंगा तुम जीत जाओंगा
पाजा बोले कि हम
लोगों को बुलाते हैं इनकी जाँच होनी चीए
मेरे भाईया
देवेसी
इधर महराज ने सिकारी बुलवाए
और जो पच्चियों का सिकार करते हैं
उनको बुलाया गया तो राणी को पहले से ही मालुम था
कि ये
जरूर
महराज हार जाएंगे और मैं जीत जाओंगी और ऐसा ही नहीं
कि
पच्ची फसी गए जाल में अरे गुनी लोग गया
महराणी ने एक गुनी से
कान में कई समझा
जो गुनीया लोग हैं जो पसु पच्चियों की जानकारी रखते हैं
उनसे राणी मिली और गोली महराज हार जाएंगे क्योंकि
ये नर और मादा हैं मैं अच्छी तरह जानती हूं
अगर महराज हार गए तो इस राज का क्या होगा
वो बनवास को चले जाएंगे
हार राणी हर गुनियन को समझाएं
हर मेरी बात सुनो चितलाई
हर मात सुनो चितलाई
गुनियाओं से एक बात कही राणी ने
महर और असर पी दे दी हैं और एक बात कही कहे गुनियों
अरे बात हमारी सुनो दिहान से
सरत लगी भारी
अरे राजा आरे तो महलन में अरे होई की अब ख्वारी लानी रहे महर गहाई
सुनो चितलाई
हे समझदार व्यक्तियों हे गुनियों
मैंने हमेशा अपने बाब के इहां कभूतर और कभूतरी पाले हैं
मैं देखा थी की बता डंगी कि एक कभूतर है और एक कभूतर्य है,
इन जौनकारी नही पढ़ है और हम दोलोग में सरत
लगी है Audrey बॉला जो हार बनवसको जाए गा
मेरी द्रिश्टी में और आप सब की द्रिश्टी में महराज हार जाएंगे
लेकिन तुम्हें महराज को हराना नहीं है ।
अरे दो
पच्छी धरे यऽगारी । अरे जाच पर कोई रही।
नरमादा दोनों
पच्ची थे
आरे लाली खुस हुई रही
लाली रही है उने समझाए
मेरी बात सुनो चितलाए
रानी ने कहा के हे गुनी लोगों तुमें जूट बोलना है ये
कहना है के दोनों नर ही नर है इनमें नरमादा नहीं है
तो लोग बोले महराणी जूट क्यों बोलवा रही है उने जूट बोलने
के लिए तुमें मैं ये मोहर अशर्पी दे रही हूँ जूट बोल लो
अगर मैं बनवाज को चली गई तो महराण मुझसे प्यार
करते हैं एक दो दिन दूर रखेंगे मुझे बुला लेंगे
मुझे छमा कर देंगे
और हालंग मैं जीत नहीं हूँ मेरे हिसाव से सर्थ के
हिसाव से मेरे महराण चोदे वर्ष के लिए चले जाएंगे
और ये राज अधूरा रह जाएंगा
के मैंना तोता से कहे
सुनो तोता चितलाई
अरे नारधर्म पे चली रही अरे पिया दो जितवाई
राजा बोध खुस हैं
बोध
आरे राजा लागे कहने अरे करो बनवासकी तयारी
मैना बोली अरे तोता
राणी सोच रही थी कि मैं महराज को जिता दूँगी
तो महराज मुझे बनवास नहीं देंगे
मुझे नादान समझ के माफ कर देंगे
राणी ने अपना धर्म ने बहया
और महराज को जोस आ गिया कि हम जीत गए मूर्ख इस्त्रि
तुझे जानकारी नहीं है
चल बाब चोदे वर्ष के लिए घर से निकल जाओ
तो पदमनी मोली है महराज आरज मेरी राजा सुने लईयो
मेरे पेट में त्यारो गरब मोई बनवा
समती दईयो
अहा!
हसी मजाग की बात क्रोध में बदल गई
आरे राजा को
गुस्साया आई है
आरे लिया में करो तेली बहंग दन्द तोई दंगाई है
मूर्ख इस्तिरी
तो ये भूल गई
कि मैं नेयमों का बहुत बड़ा पक्का हूँ
अगर मैं हार जाता तो मैं चला जाता और तू हार गई तू जान नहीं रही है
महराज मैं चली जाती लेकिन मेरी पेट में तुम्हारा भच्चा है
लड़
तो रद चला तो बुलाये हैं
सोई लकी बरके मेना यव तोता सी रोई रही है
महराज बोले मूर्ख राणी
तू बात बदल गई
तू तो कह रही थी कि मैं बनवास चली जाओगी
महराज मैं फिर चली जाओगी बच्चा को जुनम देने तो
नहीं
तू ने हमारी आज्या को और सरत को भंग किया है
जल्लादों को बुलाया राजा ने आज्या दी कि
हे जल्लादों के बस्त्र युतार के नार के
जाए बन में दीजो माल
इसे मार दो और इसके जो कपड़े हैं उन्हें मेरे सामने पेस किया जाओगी
पेस
और ऐसा ही नहीं देवराज जी
के मेनाने गिरा सुनाई
के मेनाने गिरा सुनाई के तोता
सुन्यो तू चीत लाई
अच्छे नहीं होते परूस
इतने सब्द सुने हैं दोष्टो तो मेना की
सुनी हुई कहानी पर तोता भी गदगद हो गया
के मेनाने
गिरा सुनाई
तोता सुन्यो तू चीत लाई
के
जाको बनो यधर्मी पिया
जाई तनक दया नहीं आई
की जाई तनक दया नहीं आई
तोता सुन्यो तू चीत लाई
ए तोता आज राणी पद्मिनी को
जलाद बन में ले जा रहे हैं
मारने के लिए
एक गरबती इस्त्री को
क्या क्या सेहन करना पड़ रहा है
के राणी को रहे समझाई
तोता सुन्यो तू चीत लाई
जलादोंने तलवार निकाली राणीने आखे बंद की भईया मुझे मार दो
लेकिन चारो जलाद राणी के विवार के कायल थे
महराणी इंसानों से हमेशा इंसानों जैसा विवार करती थी
कभी नोकरों को नोकरों की द्रिश्टी से ललकारा नहीं
धिक्कारा नहीं वो जलादों की आखों में आशु आ गए
वोले हे देवी हम तुम्हें नहीं मारेंगे
के तुम बिना बस्त्र बन अरे रमिजईयो सुनो माहराणी
चली जाओ मय्या
चली जाओ तुम
हम तुम्हें नहीं मारेंगे माँ तुम चली जाओ यहांसे
कि तुम बिना बस्त्र बन रमिजईयो मेरी महतारी
चल हमने त्यारो खाओ
मारें तुमें पाप लगी जाओ
हे मा तुमारी जैसे सुसील महला गव
इस राज की आवश्यक्ता थी
और किसी के अभी तक बच्चे पैधा नहीं हुए
तुम प्रतं बार मा वनने बाले थी और महराज की मती भंग हो गई है देवी
यहां से दूर चली जाओ बस्तर उतार दो
अरे महल की लाणी
बन बन भटको
जीया हमारो
जारी में अटको
महराणी
बहुत बहुत आभार बानती हैं जलादों का कहने लगी भाईया मुझे
अपने प्राणों की चिंता नहीं है लेकिन जो जीव मेरे उदर्मा है ना
बहुत बड़ा पाप लगेगा अधरम होगा मेरे सासाथ यह भी मर जाएगा
तो नोकर गोले है मय्या हमें इतने ब
महराणी पदमनी ने बस्तर उतार के जलादों से बोली हैं के भईया
आरे ज्हाडी में गई आई कै
समझाई
बस्तर ले लईयो
आरे राम राम कही दयो रे पहारत राम राम कही दयो
मेरे प्राण नाति राजा से राम राम कही दयो
इस इन अवस्था में जढडियों में छिप करके
बस्तरुतार के नौकरों को दे रही है।
इस्तुरी का आभूषण ही लजज़ा है।
और जिसके सरीर पर बस्तर ना रहे हो,
इसके क्या प्राण वीट रहे होगे,
क्या घुट रहे होगे,
क्या सोच रही होगी।
के नेनल से
बरसे नीर,
धरू के से धीर धीर बनदहियों,
पाठक रहे हैं कलम चलाई,
बारत गाई की रोज सुनाई।
चारो जलाद कपड़ा लेके रोते हुए चले हैं,
एक नोकर बोला के राणी के मरने का सभूत कैसे देंगे रहे,
कपड़े तो साफ सुत्रे हैं,
अले हाँ तूने यार याद मी दलवा दिया,
कपड़ा लेके चले दे,
एक हिरनाली ओ मारी,
खून से कपड़ा
रङी दे,
राजा के धरे ज़ङार।
आज राणी नगिन वस्ता में,
गर्व वस्ता में जाड़ीयों में बेटी हैं,
ओ रे तोता
के मैंना बोली,
तोता सुनियों कि ये कैसी अदबुद नारी है,
के प्रीतम के सुक के लिए नारी दुखबन में सही रही बहारी है,
सही रही बहारी है।
ओ रे तोता,
तु कहता है कि पुरुष अच्छे होते हैं,
घमंड में,
मद में,
पैसाओ के चकना चूर में,
औकाद के आगे एक नारी को सिर्फ चपल समझ रहा था,
घर से निकाल के गरोवस्था में, जंगल में फेक दी,
अगर वोई इस्तरी अगर अपना धरम नहीं निवाती,
तो राजा कहां होता?
तोता की गर्दन नीचे है,
समझा रही है मैंना,
के मैंना बोली रे तोता रे सुन्यो,
कि ये कैसी अदबद नारी है,
नारी रे बहारी है.
चाग में जिसकाला कोई हो,
बापे कृपा करत रहु राई है,
के गोडा पे चड़ीकी बोज बूप,
आखे टक्करन गो आई है.
महाराज भोट,
धोडा पर चड़कर के सिकार खेनने के लिए उसी बनखड में ब्रहमण कर रहे हैं,
और जैसे ही राजा का लशकर देखा,
तो राणी नंगी है,
अपना बदन छपाने के लिए ज़्ज़ाडी में दुपखी,
और जब खलवली हुई,
तो महाराज भोज ने देखा कि साइद कोई जंगली जानवर है,
महाराज बोले कोई तीर नहीं चलाएगा,
खरखरी पत्ता जब खरखर लाखे,
बोजाने होकम की दयो सुना,
शाड़ी गेर लेओ सबरे सेनिक,
अरे जिन्दो जानवर लेो पगडाई,
अरे अंतिम बार पिया को सुन रो,
अरे लाजा भोज मोई दियेगो मारी,
महाराज
कहते हीं कि जाड़ी को घेर लो,
और जाड़ी घेरी,
तो सेना पती ने देखा कि इसमें तो कोई औरत बैठी है,
मरे गए,
जोंबे कोई बालू और नहीं, सेर नहीं है,
भगे भगे गए, महाराज के जीवन की जैज़यकार हो,
कौने,
कौन सा जानवर था, पकड़ लिया,
महाराज जानवर नहीं, तो,
वोले एक नगिन वर्स्ता में एक महला बैठी है,
और जो बहुत डर रही है,
यह अच्छा रहा है,
महाराज भोज गए,
भोज ने देखा नगी है,
तो बस्तर फैक दिये दूर से,
उसने अपने जननांगों को ढखा,
और बाहर निकल के आई,
तो भोज को देख करके,
राणी पदवनी रो गई है, दोस्तों,
वो बोली है वो राणी,
मुझे मारना नहीं,
मैं अपने लिए जीना नहीं चाहती हूँ,
मैं इस बच्चे के लिए जीना चाहती हूँ,
जो मेरे पेट में है,
तुम गवड़ाओ नहीं, गवड़ाओ नहीं,
मैं उज्जैन नगरी का राजा हूँ,
तुम्हें नाम भोज है,
मैं नहीं मारूंगा तुम।
धन्वाद महराज भोज,
धन्वाद आपका,
जो आपने एक नंगी उरत को बस्तर दिये हैं,
तो राजा बोले, तुम गरबती हो,
आखिरकार तुम हो कौन?
बोले महराज,
मैं पद्वनी नारी हूँ,
राणी ने अपना पूरा परचे दिया,
मैं किसकी पत्री हूँ,
तुम्हें क्या सर्थ लगी थी,
और मैंने
पती का मान शम्मान रखने के लिए
खुद हार गई,
और मेरा पती आज दुष्ट बन गया,
और उसने मुझे घर से इस हालत में निकाल दिया,
तो राजा बोले, तुम चिंता मत करो,
आप मेरा नाम तो सुनाया आपने?
तो मैं आपको बहुत अच्छी तरह जानती हूँ,
और आपको पहले भी मैंने कई बार देखा है,
पहले तो पिर आप चिंता न करो,
और तुम हमें अपना भाई मान लीजिये।
तो राणी बोली, भाईया,
ज़ुनिया में अगर बेहन का
गर्ब कोई होता है, तो वो भाई होता है,
और मैं चाहती हूँ,
कि आप मेरी और मेरे इस बच्चे की रच्चा जरूर करें।
पहले आप चिंता मत करिए बेहन,
कि घर घर चर्चा हे गई,
भूपति बोज महान,
आरे बेहन मिली है धर्म की,
लोग करीं गुडगा।
ओरे तोता,
राजा बहुत बैसे होते हैं,
जंगल में ऐसे इस्तिती में कोई नारी मिलती नहीं,
तो सबसे पहले उसे अपनी पतनी बनाने की सोचते,
कोई नहीं सोचता कि ये हमारी बेहन बने,
येकि धन्य है वो महाराज भोष,
चिनोंने उस इस्तिती को पनां दी,
सरड दी, वो बहल जैसा पवितर रिष्टा दिया है।
आरे बीठी गए
दस मास,
आरे कुमर को
जनव दयो औरे मेहना,
आरे ललाको जनव दो औरे बेहना,
आरे बोजको खुसी पार लुटाई रहे दरबाजे गेहना,
खुसी नगरी में चाई है,
आरे लडा नारी रहे नाच महल में बज़ती बदाई है,
के बूपने ब्रहमन बोलो वाई बोजन,
आरे ब्रहमन बोलो वाई,
आरे धर्यो अच्छो नाम बोजने ब्रहमन समझाई,
पंड़ जी उची लेविल के थे,
बोलो ये बरड प्रमपरा के विपरीत है,
ये दूसरे बंसका है,
तुमारे महलों में जनम लिया है,
ये तुमारे लिए अच्छा नहीं होगा,
वोज बोले आट, बाग यहां से,
बगा दिया ब्रहमन को,
दूसरे कोई बुझरक अवस्ता के ब्रहमन बुलवाई,
और एक बात कही के,
हे विपरदेव,
के विपरदेव कहने लगे सुनो भूप चितलाई,
के ब्रहमन कोई अपमान करो,
तुम दयी ओसी सनवाई,
यह चत्री को कभी सोबा नहीं देता है,
कि किसी ब्रहमन का अपमान किये जाए,
उनके पास जतना घ्यान था,
उन्होंने उतना तुम्हें दिया था,
तुम उनसे छमा मांग लीजिये,
मैं तुम्हारे बच्चे का नाम रखतूं।
भोज ने अन ब्रहमनों को जो अपमानित किया था,
उन सब के चरणों में सीश रखा और कहा कि मुझे छमा कर दीजिये,
आपके बच्चों को मैं दिल पर ले गया था,
आपके घ्यान को मैं अग्ज्यान की तरप ले गया था,
इस हिसाब से बुझरक ब्रहमनों ने मुझे समझाया है,
अगर ऐसे आप समझाते तो मुझे क्रोध नहीं आता।
तो इधर ब्रहमन देवता उस बच्चे का नाम रख रहे हैं।
अरे ब्रहमन जी नाम
अरे बताय रहें सुनो राजा जी।
पड़ी खुळ से पदम जी।
जो बच्चा त्यारे महलों में आया है ना,
ये तुमारा बहणजा कहलाएगा।
जागे गुड नक्षत्र महराज बहुत अच्छे है।
जो राजाओं के अंस्व से है,
सत्य सत्य कहे महराज, तो इसका नाम इंदरजीत है।
पोले इंदरजीत, लहाँ।
आरे इंदरजीत बतलाई नाम ब्रहामन जी तब हरसाए।
पोले इंदरजीत बतलाई नाम
ब्रहामन जी
तब हरसाए।
आरे मैना गई है रोही
तोता को समझा के।
मेरे भाईया,
इदर इंदरजीत नाम रखा,
दिन दूना राग चोगना वो राजकुमार स्याना होता गया,
धीरे धीरे मामा जी के साथ खेलता है।
और ऐसा ही नहीं।
एक विक्रम नाम का सौदागर व्यापार करने को आया है।
उंटो पर था,
सामान लगा था भोज के,
बाग में रुख गया।
तो जिन बागों में विक्रम नाम का सौदागर रुखा,
उनी बागों में भाँजा इंदरजीत खेलने के लिए जाता था।
कि मामाजी के बाग में अरे खेले राजकुमार,
सौदागर को देखकर दैधीनी फटकार।
वो बोले, तू कौन है,
कहां से आया है,
किसकी आज्या ली तूने,
और यहां क्यों रुखना है।
वो सौदागर ने इंदरजीत में दो जहापड़ बार दीये।
वो बोले, मूर्क लड़के,
तू जानता नहीं है,
हम सौदागर हैं।
आज इंदरजीत रोता हुआ दोस्तों,
भोज के पास पहुंचा।
परिश
करिदो
बचन सुनाई।
भोज ने जाकर के सौदागर से कहा,
मूर्क, तू जानता है ये कौन है।
भोज भूप ने सौदागर में बहुत फटकार लगाई,
बहुत मार लगाई,
गिड़ाने लगा है वो सौदागर,
और कहने लगा है, महराज, मैं विक्रम सीग हूँ।
मैं आपके यहाँ पहले भी आता रहा हूँ।
मुझे छमा कर दीजिये।
अगर ये आपका भाँजा है तो मेरा भी भाँजा है।
आज उसने इंद्रजीत के पैर चुए हैं।
और दोस्तों,
महराज ने जब ये देखा कि ये तो हार मान गया
है और बच्चे से प्रेम करने लगा है तो चलो छमा ही कर देते हैं।
चल,
कोई दिक्कत नहीं।
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Artist
Bharat Shastri
Uploaded byThe Orchard
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