दिल्ली की धूप में धुंदली सी शाम भले
खुद को ढूँढ रहा हूँ गुहुना मैं गलियो में बल-बल
संगीत सुनाई देता पर ले मेरी नहीं
हर छहरे में जातता पहचान नहीं
कौन हूँ मैं कहा खो गया हूँ रास्ते में
जिन्दगी का ये सफर किस सपने के वास्ते में
हवां से पुछता हूँ नदियों से करता सवाल
खुल की परचाई ढूँढ देता ये कठा हुआ कमाल
पुरानी किताबों में खोए हुए तुक पढ़ता हूँ
हर लफ की तहे में खुद को समझने की कोशिश करता हूँ
पुराने शहर की गलियों में खट-खटाता हूँ दरवाजे
शायद किसी कोने में
खुद का दिदार पाऊंग सपने में
मैं कौन हूँ मैं
कहाँ खो गया हूँ रास्ते में
संदगी का ये सफर
किस सपने के वास्ते में
हवाओं से पुछता हूँ नदियों से करता सवाल
खुद की परचारी ढूंडता ये खा हुआ कमाल
शायद रास्ता वो ही है जो फुद मैं बनाऊंगा
शायद मन्जिल वो ही है जो फुद मैं पाऊंगा
हर कदम पर थोकर खाऊंग पकर मन्जिल की और बढ़ूंगा
फुद को ही पहचानूँगा फुद को ही समझूंगा
कौन हूँ मैं अब समझ रहा हूँ रास्ते में
जिन्दगी का ये सफर खुद ढूढणे के वास्ते में
हवाओं से निला जवाब नदीयोंने दिया सवाल
खुद की परचाई मिली ये मेरा ही कमाल
फुद को ढूढन रहा हूँ खुद को ही पहचान रहा हूँ
हर धड़कन में मेरी एक नया मैं पा रहा हूँ
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