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V.A
Satsang Ka Mahatv

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आपके पास में छोटा घर है, परंत यदि पती पत्नी परिशपर प्रेम से रहते हैं, छोटे से घर में बड़ा सा सुख मिल सकता है।
जिस घर में कलह कलेश है, राग दोएश है, जिस घर में परिशपर में संघर्ष है, उस घर में दुख ही दुख पैदा होता है।
याद रखना, दुख आकास से नहीं बरसता है, दुख हमेशा है।
आपके
विश्वास
कर्म आचिरण और शुभाव से पैदा होता है।
अपने घर के बच्चों से भी प्रेम करना, बच्चों को अच्छे संसकार देना, अच्छी बात सिखाना।
बच्चों से गलती हो जाये तो उनको छमा भी करना।
बच्चों को बहुत मत मारना, क्योंकि बच्चे अज्ञान होते हैं।
बहुत मारने से बच्चे दुखई हो जाये।
डरा दीजिये और बच्चों को समझा दीजिये बड़े हो जाएंगे तो वही बच्चे आपको समझा धायेगे।
अपने भाई से भी प्रेम करो भाई से प्रेम करना सीखना है तो भरत जी से सीखो
भरत प्रेम के शागर हो
जब भरत के बारे में तुलशी दास लिख रहे थे तो तुलशी दास कहते हैं कि भरत का चेरित्र लिखने में मेरी कलम रुक जाती है
और भरत को चारो भाईयों को एक साथ बिठा दो राम लच्छिमन भरत शत्रभन को तो मैं सबसे पहले भरत को परडाम करूँगा
तुलशी दास कहते है क्यों बोले क्यों कि जिनको राजगद्धि मिली थी पर राजगद्धि पर खुद नहीं बैठे अवेध्या की गद्धि पर भगवान राम की पादुका बिठाया है
वो भरत राम से पहले पूजनी जो राम के चिरण पादुका का भी सम्मान करते हैं
महिबूब की हर चीज महिबूब होती है
पादुका आसन सय्याद गुरुणा यद विष्ठतं नमश कुर्वीत तत्सर्वं पादाभ्याम ना अस्परशेत कुछित
याद रखना
पूजनी होते हैं भरत ने राम से पादुका मांगा था
अपने इष्ट रेव का आसन पादुका उनका विष्ठतं ओड़ने का सामान उनका कमंडल कभी पैर से नहीं चूना चाहते हैं
जो उनके अविष्ठत सामान है उनमें लाथ कभी मत मारो
अन्यथा पाक लग जाता है गुरुणा यद अविष्ठितं
नमस्खूरुबित उस सामान को भी नमस्कार करना चाहिए पादुका को नमस्कार करना चाहिए भरत राम के
भी पादुका को भी प्रणाम करते हैं इसलिए तुलशी दास कहते हैं कि भरत को मैं प्रथम प्रणाम करता हूं
मानस की चोपाई है गा देता हूं प्रणाम प्रथम भरत के चर्या जा सुने में ब्रत जाई न बरे ना
ऐसे भरत जी को मैं प्रणाम करता हूं जिनके नियम जिनका
ब्रत जाई न बरे ना
आजेद और जिनके प्रेम का वरण नहीं कर सकता है उनके नियम भी बहुत कठीन है भरत के और जिसके पास नियम है
उसे के पास में सन्यम रहता है नियम टूट गया तो सन्यम टूटेगा इसलिए नियम बहुत बड़ी चीन खुश
भारती संस्कृति में बहुत से नियम है, उस नियम का पालन कर लो।
प्रन्महु प्रथा मैं भरत के चैरेना, जासुने मैं बैत जाई नगरेना।
और आपके जीवन में ब्रत भी होना चाहिए। सत्संग सुनने का ब्रत लो।
अभी बंडारी साहब ने बहुत से नियम है, उस नियम का पालन कर लो।
आपके जीवन में ब्रत भी होना चाहिए। सत्संग का नसा पहली बात तो चड़ता नहीं है।
लेकिन अगर चड़ गया तो फिर उतरता भी नहीं। बहुत बड़ी बात है।
जिनके ऊपर चड़ गया उतरता नहीं। यहे नसा एक।
कितने लोग शत्संगियों को कहते ये पागल हो गया। जब देखो तब शत्संगी सुनता रहता है।
तो शत्संगी क्या जबाब देता है,
अगर यही बिगड़ी टिमाग हो में भरी अमृत के लश्य हैं
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अजच्छे हैं
ए सजसंग में अगर पागल भी हो जाया
आदमी
तो सजसंग में जो पागल हो जाता है न
उशका धुनियादारी
को नहीं संसार में सभी पागल ही है
ये तो पूरा जिगत पागल
पांगल छाना है यहां पांगल हो खीलो कोई कमी है कोई सराब के लिए पांगल है कोई स्त्री के लिए पांगल
है कोई पुरुष के लिए पांगल है कोई भोगों के लिए पांगल है पुरी बीड़ी सिगरेट के लिए पांगल है कोई
करते हुए
जिस घर में कलह कलेश है, राग दोएश है, जिस घर में परिशपर में संघर्ष है, उस घर में दुख ही दुख पैदा होता है।
याद रखना, दुख आकास से नहीं बरसता है, दुख हमेशा है।
आपके
विश्वास
कर्म आचिरण और शुभाव से पैदा होता है।
अपने घर के बच्चों से भी प्रेम करना, बच्चों को अच्छे संसकार देना, अच्छी बात सिखाना।
बच्चों से गलती हो जाये तो उनको छमा भी करना।
बच्चों को बहुत मत मारना, क्योंकि बच्चे अज्ञान होते हैं।
बहुत मारने से बच्चे दुखई हो जाये।
डरा दीजिये और बच्चों को समझा दीजिये बड़े हो जाएंगे तो वही बच्चे आपको समझा धायेगे।
अपने भाई से भी प्रेम करो भाई से प्रेम करना सीखना है तो भरत जी से सीखो
भरत प्रेम के शागर हो
जब भरत के बारे में तुलशी दास लिख रहे थे तो तुलशी दास कहते हैं कि भरत का चेरित्र लिखने में मेरी कलम रुक जाती है
और भरत को चारो भाईयों को एक साथ बिठा दो राम लच्छिमन भरत शत्रभन को तो मैं सबसे पहले भरत को परडाम करूँगा
तुलशी दास कहते है क्यों बोले क्यों कि जिनको राजगद्धि मिली थी पर राजगद्धि पर खुद नहीं बैठे अवेध्या की गद्धि पर भगवान राम की पादुका बिठाया है
वो भरत राम से पहले पूजनी जो राम के चिरण पादुका का भी सम्मान करते हैं
महिबूब की हर चीज महिबूब होती है
पादुका आसन सय्याद गुरुणा यद विष्ठतं नमश कुर्वीत तत्सर्वं पादाभ्याम ना अस्परशेत कुछित
याद रखना
पूजनी होते हैं भरत ने राम से पादुका मांगा था
अपने इष्ट रेव का आसन पादुका उनका विष्ठतं ओड़ने का सामान उनका कमंडल कभी पैर से नहीं चूना चाहते हैं
जो उनके अविष्ठत सामान है उनमें लाथ कभी मत मारो
अन्यथा पाक लग जाता है गुरुणा यद अविष्ठितं
नमस्खूरुबित उस सामान को भी नमस्कार करना चाहिए पादुका को नमस्कार करना चाहिए भरत राम के
भी पादुका को भी प्रणाम करते हैं इसलिए तुलशी दास कहते हैं कि भरत को मैं प्रथम प्रणाम करता हूं
मानस की चोपाई है गा देता हूं प्रणाम प्रथम भरत के चर्या जा सुने में ब्रत जाई न बरे ना
ऐसे भरत जी को मैं प्रणाम करता हूं जिनके नियम जिनका
ब्रत जाई न बरे ना
आजेद और जिनके प्रेम का वरण नहीं कर सकता है उनके नियम भी बहुत कठीन है भरत के और जिसके पास नियम है
उसे के पास में सन्यम रहता है नियम टूट गया तो सन्यम टूटेगा इसलिए नियम बहुत बड़ी चीन खुश
भारती संस्कृति में बहुत से नियम है, उस नियम का पालन कर लो।
प्रन्महु प्रथा मैं भरत के चैरेना, जासुने मैं बैत जाई नगरेना।
और आपके जीवन में ब्रत भी होना चाहिए। सत्संग सुनने का ब्रत लो।
अभी बंडारी साहब ने बहुत से नियम है, उस नियम का पालन कर लो।
आपके जीवन में ब्रत भी होना चाहिए। सत्संग का नसा पहली बात तो चड़ता नहीं है।
लेकिन अगर चड़ गया तो फिर उतरता भी नहीं। बहुत बड़ी बात है।
जिनके ऊपर चड़ गया उतरता नहीं। यहे नसा एक।
कितने लोग शत्संगियों को कहते ये पागल हो गया। जब देखो तब शत्संगी सुनता रहता है।
तो शत्संगी क्या जबाब देता है,
अगर यही बिगड़ी टिमाग हो में भरी अमृत के लश्य हैं
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अजच्छे हैं
ए सजसंग में अगर पागल भी हो जाया
आदमी
तो सजसंग में जो पागल हो जाता है न
उशका धुनियादारी
को नहीं संसार में सभी पागल ही है
ये तो पूरा जिगत पागल
पांगल छाना है यहां पांगल हो खीलो कोई कमी है कोई सराब के लिए पांगल है कोई स्त्री के लिए पांगल
है कोई पुरुष के लिए पांगल है कोई भोगों के लिए पांगल है पुरी बीड़ी सिगरेट के लिए पांगल है कोई
करते हुए
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