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Satyendra Pathak
Siya Ram Jai Ram Jai Jai Ram

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Lyrics
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सिया राम जे राम जे जे राम
सिया राम जे राम
सिया राम जे जे सिया राम
सिया राम जे जे राम
सिया राम जे जे सिया राम
सिया राम जे राम
सिया राम जे जे सिया राम
सिया राम जै जै सिया राम
सिया राम जै राम जै जै सिया राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै सिया राम
ए राम मेरे राम
सिया राम जै जै राम
ए राम मेरे राम
सिया राम जै जै राम
सिया राम, जे जे राम, मेरे राम, जे जे राम
सिया राम जै जै राम
सिया राम जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै जै सिया राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै जै सिया राम
भगवान स्री हरी विश्मु सयम मानो बनकर धर्ती पर अवतरित हुई
महाराज मनु और महाराणी शतरुपा को दिया हुआ वरदान
सत्य किया
वही महाराज मनु और महाराणी शतरुपा
अपने अगले जन्म में अयोध्या धाम के महाराज दसरत और महाराणी कवशल्या भी
नारायण ने नर शरीर धारण कर इन दोनो महान पुन्यातमाओं के पुत्र के रूप में
जन्म लेकर इनको भी धन्य किया और मानव योनि को भी धन्य किया भगवान स्री हरी ने
अपने साथ अपने अंश रूप में तीन भाईयों को लेकर अवतरित हुई
महाराज दसरत कवशल्या कैकेई सुमित्रा के इन चार पुत्रों का नाम संसकार हुआ
राम भरत लक्षमण और शत्रुगन महाराज दसरत के महल से लेकर भूरी अयोध्या जी सहित तीनों लोपों में आनंद चा गया
राम भरत लक्षमण और शत्रुगन महाराज दसरत के महाराज दसरत के महल से लेकर भूरी अयोध्या जी सहित तीनों लोपों में आनंद चा गया
राम भरत लक्षमण और शत्रुगन महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज द
सुनी संकेत कर दिया और भगवान सूर्यदेव अस्ताचल की ओर चल पड़े। रात आई तो भगवान से शिकायत करने लगी कि प्रभू आपने मुझे धर्शन देने में बड़ी देर कर दी, बहुत प्रतिक्षा करवाई आपने।
भगवान ने कहा, धर्शन देने में भले प्रतिक्षा करवाई हो, भले ही बिलंब हुआ हो, पर वरदान देने में कोई बिलंब नहीं करूँगा।
बिलंब से आपकी गोद में आया हूँ, इसलिए आपको वचन देता हूँ, कि इस अवतार में यह शरीर आपके रंग में ही रंगा रहेगा।
अर्थार, मैं रात की कालिमा लेकर काला ही रहूँगा। रात तो धन्य हो गई, तभी चंद्र देव ही आप पहुँचे।
भगवान को प्रडाम करके, दर्शन करते हुए बोले, भगवन, मैंने भी बड़ी प्रतिक्षा की है आपके दर्शनों की।
महीने भर से पीछे खड़ा सोच विचार कर रहा था, कि कब सूर्य भगवान जाएंगे और कब मैं आपके दर्शन करूँगा।
ऐसी प्रतिक्षा अब दोबारा मत करवाना प्रभु। भगवान गदगद हो गए और चंद्रदेव से बोले, हे चंद्रदेव, आप तनिक भी चिंता मत करो, आपको तो मैं सदा सदा के लिए अपने नाम में सजा लूँगा।
और यह कहकर भगवान स्री राम जी ने चंद्रदेव को वरदान देते विए कहा, यह दश्रत कवशल्यानंदन राम, आज से राम चंद्र कहलाएगा, ऐसे है मेरे राम।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, है नात नारायड वासु देवा।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, है नात नारायड वासु देवा।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, है नारायड वासु देवा।
नात नारायण वासु देवा
तू है प्रभू मैं तेरा पुजारी
नात नारायण वासु देवा
नात नारायण वासु देवा
चभी तेरी प्रभू मेरे मन में बसे
कैसे डूबेगा वो तूने था माझी से
चभी तेरी प्रभू मेरे मन में बसे
कैसे डूबेगा वो तूने था माझी से
कैसे डूबेगा वो तुने ठामाजी से, ठामाजी से
तुम ही हो भर्तन के हितकारी, है नाथ नारायड वासु देवा
शीपेश गोविंद है ये उजानी, है नाथ नारायड वासु देवा
एक बार माता कवशल्या ने छोटे से बालक राम लला को अश्नान कराया
शिंगार कराया, काजल का टीका लगाया, दुगधुपान कराया और पालने में सुला दिया
एक बार जननी अधवाया
एकर श्रिम्गार पल न पवड़ाई
लला को नहला धुलाकर
खिला पिलाकर
कवशल्या मिया घर के मंदिर में
भगवान को भोग लगाने गई
और वहाँ देखती क्या है
रामलला मंदिर में
भगवान को लगा हुआ भोग खा रहे है
कौशल्या मैया पालने के पास चकित होकर दवड़ी दवड़ी आती है
तो वहां भी देखती हैं कि राम लला वैसे ही पालने में लेटे हुए खेल रहे है
आश्चर ये चकित मैया फिर दवड़ते भी मंदिर की तरफ जाती है
तो वहां भी राम लला को ही देखती है
कौशल्या माता हक्की बक्की आश्चर्य चकित रह जाती है
इतनी भ्रमित हो जाती है कि अचेत होने लगती है
तभी बाल रूप भगवान स्री राम कौशल्या मैया के गोद में आकर बैठ जाते है
और भोग प्रसाद से भरा अपना बाल मुख मुस्काते हुए खोन देते है
भोग प्रसाद से भरे मुक को मैया देखती है और देखती ही रह जाती है
बालक राम लला की छोटे से मुक में सारा ब्रमभान्ड दिखाई देने लगता है
करोणो सूर्य और चंद्रमा अनगिनत तारे अनगिनत ग्रह नशत राम लला के मुख में घूम रहे हैं
कौशल्या मैया घबरा जाती हैं आखें बंद कर लेती हैं राम जी बाल सुलक मुस्कान मुखडे पर सजाए खेलने लगते हैं
कौशल्या माता समझ जाती हैं कि ये प्रभु की माया थी जिसने मुझे भरमाया
वो जानती तो है कि मेरे प्रभु के रूप में परमात्मा ही प्रगट हुआ है
परन्तु कौषल्या मैया उस परमात्मा को परमात्मा की तरह नहीं
पुत्र की तरह ही देखना जानना और मानना चाहती है
इसलिए वे बालक राम से कहती है
राम मैं तुम्हें आजीवन पुत्र के समान ही देखना चाहती हूँ
यद मेरे प्रति तुम्हारा तनिक भी श्नेह है
तो अब कभी सपने में भी मुझे तुम्हारी यह माया न सताए
ना डराए और ना ही भरमाए
की जै शिशु लीला अतिप्रिय शीला सुख परम अनूपा
सुनी बचन सुझाना रोदन ठाना होई बालक सुरुभूपा
माता की यह बात सुनकर उनका मनोरत जानकर और उनका अनुरोध मानकर
रामजी सामान्य से नन्ही बालक होकर पहले की तरह रोने लगे
और मैया उन्हें गोद में उठाकर दुलारने लगी
मनुहार करने लगी
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
ए राम मेरे राम सिया राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै सिया राम
करते हैं
सिया राम जे राम
सिया राम जे जे सिया राम
सिया राम जे जे राम
सिया राम जे जे सिया राम
सिया राम जे राम
सिया राम जे जे सिया राम
सिया राम जै जै सिया राम
सिया राम जै राम जै जै सिया राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै सिया राम
ए राम मेरे राम
सिया राम जै जै राम
ए राम मेरे राम
सिया राम जै जै राम
सिया राम, जे जे राम, मेरे राम, जे जे राम
सिया राम जै जै राम
सिया राम जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै जै सिया राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै जै सिया राम
भगवान स्री हरी विश्मु सयम मानो बनकर धर्ती पर अवतरित हुई
महाराज मनु और महाराणी शतरुपा को दिया हुआ वरदान
सत्य किया
वही महाराज मनु और महाराणी शतरुपा
अपने अगले जन्म में अयोध्या धाम के महाराज दसरत और महाराणी कवशल्या भी
नारायण ने नर शरीर धारण कर इन दोनो महान पुन्यातमाओं के पुत्र के रूप में
जन्म लेकर इनको भी धन्य किया और मानव योनि को भी धन्य किया भगवान स्री हरी ने
अपने साथ अपने अंश रूप में तीन भाईयों को लेकर अवतरित हुई
महाराज दसरत कवशल्या कैकेई सुमित्रा के इन चार पुत्रों का नाम संसकार हुआ
राम भरत लक्षमण और शत्रुगन महाराज दसरत के महल से लेकर भूरी अयोध्या जी सहित तीनों लोपों में आनंद चा गया
राम भरत लक्षमण और शत्रुगन महाराज दसरत के महाराज दसरत के महल से लेकर भूरी अयोध्या जी सहित तीनों लोपों में आनंद चा गया
राम भरत लक्षमण और शत्रुगन महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज दसरत के महाराज द
सुनी संकेत कर दिया और भगवान सूर्यदेव अस्ताचल की ओर चल पड़े। रात आई तो भगवान से शिकायत करने लगी कि प्रभू आपने मुझे धर्शन देने में बड़ी देर कर दी, बहुत प्रतिक्षा करवाई आपने।
भगवान ने कहा, धर्शन देने में भले प्रतिक्षा करवाई हो, भले ही बिलंब हुआ हो, पर वरदान देने में कोई बिलंब नहीं करूँगा।
बिलंब से आपकी गोद में आया हूँ, इसलिए आपको वचन देता हूँ, कि इस अवतार में यह शरीर आपके रंग में ही रंगा रहेगा।
अर्थार, मैं रात की कालिमा लेकर काला ही रहूँगा। रात तो धन्य हो गई, तभी चंद्र देव ही आप पहुँचे।
भगवान को प्रडाम करके, दर्शन करते हुए बोले, भगवन, मैंने भी बड़ी प्रतिक्षा की है आपके दर्शनों की।
महीने भर से पीछे खड़ा सोच विचार कर रहा था, कि कब सूर्य भगवान जाएंगे और कब मैं आपके दर्शन करूँगा।
ऐसी प्रतिक्षा अब दोबारा मत करवाना प्रभु। भगवान गदगद हो गए और चंद्रदेव से बोले, हे चंद्रदेव, आप तनिक भी चिंता मत करो, आपको तो मैं सदा सदा के लिए अपने नाम में सजा लूँगा।
और यह कहकर भगवान स्री राम जी ने चंद्रदेव को वरदान देते विए कहा, यह दश्रत कवशल्यानंदन राम, आज से राम चंद्र कहलाएगा, ऐसे है मेरे राम।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, है नात नारायड वासु देवा।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, है नात नारायड वासु देवा।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी, है नारायड वासु देवा।
नात नारायण वासु देवा
तू है प्रभू मैं तेरा पुजारी
नात नारायण वासु देवा
नात नारायण वासु देवा
चभी तेरी प्रभू मेरे मन में बसे
कैसे डूबेगा वो तूने था माझी से
चभी तेरी प्रभू मेरे मन में बसे
कैसे डूबेगा वो तूने था माझी से
कैसे डूबेगा वो तुने ठामाजी से, ठामाजी से
तुम ही हो भर्तन के हितकारी, है नाथ नारायड वासु देवा
शीपेश गोविंद है ये उजानी, है नाथ नारायड वासु देवा
एक बार माता कवशल्या ने छोटे से बालक राम लला को अश्नान कराया
शिंगार कराया, काजल का टीका लगाया, दुगधुपान कराया और पालने में सुला दिया
एक बार जननी अधवाया
एकर श्रिम्गार पल न पवड़ाई
लला को नहला धुलाकर
खिला पिलाकर
कवशल्या मिया घर के मंदिर में
भगवान को भोग लगाने गई
और वहाँ देखती क्या है
रामलला मंदिर में
भगवान को लगा हुआ भोग खा रहे है
कौशल्या मैया पालने के पास चकित होकर दवड़ी दवड़ी आती है
तो वहां भी देखती हैं कि राम लला वैसे ही पालने में लेटे हुए खेल रहे है
आश्चर ये चकित मैया फिर दवड़ते भी मंदिर की तरफ जाती है
तो वहां भी राम लला को ही देखती है
कौशल्या माता हक्की बक्की आश्चर्य चकित रह जाती है
इतनी भ्रमित हो जाती है कि अचेत होने लगती है
तभी बाल रूप भगवान स्री राम कौशल्या मैया के गोद में आकर बैठ जाते है
और भोग प्रसाद से भरा अपना बाल मुख मुस्काते हुए खोन देते है
भोग प्रसाद से भरे मुक को मैया देखती है और देखती ही रह जाती है
बालक राम लला की छोटे से मुक में सारा ब्रमभान्ड दिखाई देने लगता है
करोणो सूर्य और चंद्रमा अनगिनत तारे अनगिनत ग्रह नशत राम लला के मुख में घूम रहे हैं
कौशल्या मैया घबरा जाती हैं आखें बंद कर लेती हैं राम जी बाल सुलक मुस्कान मुखडे पर सजाए खेलने लगते हैं
कौशल्या माता समझ जाती हैं कि ये प्रभु की माया थी जिसने मुझे भरमाया
वो जानती तो है कि मेरे प्रभु के रूप में परमात्मा ही प्रगट हुआ है
परन्तु कौषल्या मैया उस परमात्मा को परमात्मा की तरह नहीं
पुत्र की तरह ही देखना जानना और मानना चाहती है
इसलिए वे बालक राम से कहती है
राम मैं तुम्हें आजीवन पुत्र के समान ही देखना चाहती हूँ
यद मेरे प्रति तुम्हारा तनिक भी श्नेह है
तो अब कभी सपने में भी मुझे तुम्हारी यह माया न सताए
ना डराए और ना ही भरमाए
की जै शिशु लीला अतिप्रिय शीला सुख परम अनूपा
सुनी बचन सुझाना रोदन ठाना होई बालक सुरुभूपा
माता की यह बात सुनकर उनका मनोरत जानकर और उनका अनुरोध मानकर
रामजी सामान्य से नन्ही बालक होकर पहले की तरह रोने लगे
और मैया उन्हें गोद में उठाकर दुलारने लगी
मनुहार करने लगी
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
सियाराम जैराम जैजैराम
सियाराम जैजैसियाराम
ए राम मेरे राम सिया राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
सिया राम जै राम जै जै राम
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