रूप में अवतार धारन करते हैं
यह भग्�wahन का छटवा अवतार
साथवा अवतार श्री हरी मिश्णू यग की रूप में धारन करते हैं
जिसमें यग का मार्ग बताते हैं
आठवा अवतार श्री हरी मिश्णू
रिशब देव की रूप में धारन करते हैं
जो मार्ग बताते हैं वाज सादु और संतों के लिए बंदनीय माना गया है
नौवा अवतार श्री हरी विश्णू रिशियों की प्रातना करने पर प्रत्व रूप में अवतार धारन करते हैं
जिसमें कि वो राजा बन करके कई वर्षों तक राजपाट समालते हैं
दसवा अवतार श्री हरी विश्णू मतस्य अवतार धारन करते हैं
इसमें कि वो रिशियों को नौका पर बिठा करके उनकी रक्षा करते हैं
ग्यारवा अवतार श्री हरी विश्णू समुद्र मंधन के अफसर पर
जब देवता और दैत दोनों बिफल हो रहे थे
जब मंद्राजशल परवत का भार नहीं समा रहा था
तब श्री हरी विश्णू एक अत्यंत विशाल कच्छुए का रूप धारन करते हैं
कच्छप अपतार धारन करते हैं
और मंद्राजशल परवत को अपनी पीट पर धारन करते हैं
बारवा अवतार श्री हरी विश्णू धनवंत्री जी की रूप में धारन करते हैं जिने की आशुदी का देफता भी कहा गया है
जो अपने एक हाथ में अमृत का कलश और दूसरे हाथ में कंगन लेकर के प्रकट खोते हैं
तेरवा अवतार श्री हरी विशनू मोहीनी अवतार धारन करते हैं
वराज जिस अवतार में भगवान काफी सुनदर दिख रहे हैं
सफतार में वो दैत्यों को अपनी तरफ आकरशित करते हैं
तेड़ी मड़ी चाल चल रहे हैं
और देवताओं को अमरित पान कराते हैं
चौधावा अवतार श्री हरी विश्णु नरसिंग अवतार धारन करते हैं
इसमें कि वो पहलाद जी की रख्षा करते हैं
सफतार की कथा को भी आने वाले दिनों में विस्तार से सुनेंगे
पंदरवा अवतार श्री हरी विश्नू कश्यप मुनी की पतली अदीती के गर्व से बामन के रूप में अवतार धारन करते हैं
बटुक सुरूप है जिसमें वो दैते राजवली से तीन पगभुमी दान में मांगते हैं
16 अप्ताय श्री हरीविष्णु ब्रामभणों की रखसा करने के लिए परुष राम जी के रूप में धार्ण करते हैं
17 अप्ताय भगवान हरीविष्णु वेद व्यास जी के रूप में धार्ण करते हैं
जो महामुनी पारसरजी के पुत्र हुए तेरे जिसमें कि वह वह बुरानों के तत्तम शद्ध की ग्रंथों के रचना करते
हैं पुराणतों के रचनाल करिए हम अवतारावतार श्री हरी विशनु जब रावण के अच्छा और काफी बळा हो गया थी तब
मर्याद पुर्शो तम श्री राम के रूप में अवतार लिखते हैं,
19 वा और 20 वा अवतार,
श्री हरि व्यश्णु कृष्ण और बलदाओ के रूप में धारन करते हैं,
जिसमें वो पूरी प्रत्मी का भार उतारते हैं,
अब जो एक किसवा अवधार है वो भगवान हन्स अवधार धारण करते हैं
देखिए मराज उस अवधार में पहली बार भगवान ने ब्रह्मा जी को भागवत महापुरान सुनाई
नहीं हैं जो कि मकर शलोकों में कहीं हैं जिसे जिसे चतृअरोक श्रीम мतर भागवत
भी कहते हैं सबसे पहले श्रीमत भागवत्ह भगवान ने ब्रम्मा जी को सुनाई पर ब्रह्मा जी
जी को सुनाइए इसमें पहली बार श्रीमत भागवत भागवान का ज्ञान भगवान देते हैं 22 अवतार भगवान है ग्रीव
अवतार धारण करते हैं उसकी कथा आती है कि है ग्रीव नाम का एक देखते थे जिसका कि सर भोड़े का है और
यह सरीर मनुष्यक आएगे ब्रह्मा जी को प्रसंद करने के लिए न� protector पर श्या पर ब्रह्मा जी प्रसंद होती
मांगो क्या मां गिलाव कि यहता है कि आप उनसे यह वर्दान दे दीजिए कि मुझे मुझे जैसे ही कोई है ग्रीव मारस
सके यह सुनकर के ब्रह्मा जी कहते हैं कि वह जानता है कि पूरे संसार में उसके जैसा और कोई नहीं
आज बात सच भी है कौन ऐसा होगा जिसका सर घुड़े का शरीर मनुष्य एक तरह से अमर होने का वर्दान मांग लिया
तो जैसे ही यह वर्दान मिलता है हैं ग्रीव के आतंक बहुत बड़े गए प्रजा को परशान करता है बहुत ज्यादा
कश्ट देता है अजय करके प्रजात राहि मांग करने लगती हैं जाकर के भगवान से प्राथना करती है तब भगवान
उसका उधार करने के लिए उसके ही जैसा हैग्रीव अवतार धारण करते हैं और उसका बद्द कर देते हैं
तेज़वा अवतार श्री हरी विष्णु कल युग आ जाने पर मगद्देश विहार राजा अजन के पुत्र बुद्ध के रूप में
धारण करते हैं 24 अवतार श्री हरी विष्णु कलकी के रूप में धारण करी कहा जाता है कि अभी अवतार उन्होंने
धारण नहीं करा जब कल युग का अंत निकट होगा जब राजाओं के शास्यकों के अत्याचार काफी बढ़ जाएंगे तब भगवान
कल युग के अंत के समय संबल नामक गांव में विष्णु याश्या के घर कलकी के रूप में अवतार धारण करेंगे तो इस तरह से भगवान के 24 अवतारों की कथा आती है
अब मराज्यों 24 अवतारों में से भगवान ने दो अवतार पूरी तरह से लिया
श्री क्रिष्ण अवतार श्री राम अवतार
मन में बात आती है तो श्री क्रिष्ण और श्री राम में अंतर क्या है
तो कहा जाता है कि राम क्रिष्ण दो एक है अंतर नहीं निमेश
इनके नयन गंभीर है, तो उनके चपल विश्वी
मतलब, प्रभू श्री राम जो है, वो मर्यादा पुर्शुत्तम है
प्रभू श्री क्रिष्ण लीला पुर्शुत्तम है
प्रभू श्री राम ने जो अपने जीवन में अनुभव करा है
वो श्री कृष्ण ने अपने जीवन में गाया है
इतना अंतरे मरा
अब यहाँ पर वेद व्याजी बड़े चिंता में है
क्योंकि कल्यूग आने वाला है
वो जानते हैं कि कल्यूग का व्यक्ती रोग शोक में खिरा रहा है
तो सोचते हैं कुछ तो ऐसा करना पड़ेगा
जिससे कल्यूग के व्यक्ती का उधार हो सके
तो कई पुरानों की वेदों की रचना करने हैं
वो चार वेदों की रचना करते हैं
रिगवेद, सामवेद, यजुरवेद, अत्थरवेद
चार वेद की रचना करिये मरा
लेकिन वेद व्यास जी को संतुष्टी नहीं मिल रही है
कहीं ना कहीं लगा है कि अभी कुछ तो छूटा है
कुछ तो अधूरा है जो मेरा लिखना बचा हुआ है
पर समझ में नहीं आ रहा है वो क्या है
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