जीवन में हर व्यक्ति शुक्षांति ढूंढता रहता है
परंद किसी किसी सौभाग साली आत्मां को ही शुक्षांति बिलती है
धन और शम्पति तो बहुत लोगों को मिल जाती है
लेकिन शुक्षांति नहीं बिलती है
और वा धन भी किस काम का है
जीवन में शांति नहीं है
वो धन भी कांटों की तरह चुखने लगता है
वो भीस्तर किस काम का है
यदि आँखों में नीद ना हो
वो भोजन किस काम का है
यदि पेट में भूख ना हो
और वो सत्संग मंडब भी किस काम का है
यदि उसमें गुर्देओ का सत्संग ना हो
यद रखना हो
यदि उसमें गुर्देओ का सत्संग ना हो
संसार में चार फल होते हैं तीरथ में असनान करने से कबीर कहते हैं तीन भल मिलते हैं तीरथ ना
अनंत फल है कहाई कवीर विचार कर कहते हैं कि यदि शद्गुरू मिल जाएं तो अनंत फल बन जाएं फिर भी
परंट तुलशी दाश कहते हैं कि शद्गुरू का मिलना कठिड़ है
धर्मगुरू मिल सकता है
धोंगी गुरू मिल सकता है, पखंडी गुरू मिल सकता है, उधंडी गुरू मिल सकता है,
लेकिन सदगुरू का मिलना कठ नहीं है।
और सदगुरू बेराग्यवान होता है
उसकी पास कोई
संसार के
राग रंग और भोग
की व्यवस्था नहीं होती है
और एक बात अश्मरण रखना
संसार के भोगों को जितना तुम भोगों के
उतना ज्यादा भोगों को भोगने की भूख जबेगी
शराब को जितना ही तुम पियोगे उतना
और शराब पीने की इच्छा ब्रता होती है
सराबी सोचता है कि शराब पी कर मैं
तरप्त हो जाओंगा तरप्त नहीं हो सकती है
एक बीडी पीओ तो दूसरी बीडी पीने का मन होता है
और दूसरी पीओ
तो तीसरी पीने की इच्छा होती है, और फिर जिन्दगी भर पीते रहो, पीते रहो, पीते रहो, आखिरी में बीडी तुमको पी जाता है, बीडी आपके शरीर के स्वास्त को पीती है,
और बीडी लोग क्यों पीते हैं, राजस्थान में भी बीडी खुब पीते हैं, राजस्थान में भी दमातमश्ट कलंदर और बीडी पीने वालों का आखिरी नंबर है,
बीडी सुख के लिए लोग पीते हैं, इससे सुख मिल जाएगा,
लेकिन,
किसी वस्तु से
और किसी नसा से
और किसी सामान से
दूर तक सुख का संबंध नहीं
क्योंकि
सुख इतना सस्ता नहीं है
कि एक रुपे की बीड़ी से मिल जाए
सुख पैसे से नहीं मिलता है
पैसे से केवल
सरीर को सुभिधा बिलती है