Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
हे शंतों, बक्ती शद्गुरू की क्रपा से जीव के मन के अंदर उतपन्न होती है।
गुरु के प्रति प्रेम हो गए, प्रेम धीरे धीरे भक्ती में बदल जाता है।
संसार के प्रति प्रेम हो जाये, प्रेम धीरे धीरे मोह μαमता और वाश्णा में बदल जाता है।
प्रेम मौलिक रूप है
परंत
तुम प्रेम को जहां लगाते हो
फिर वो अपना रूप बदल लेता है
शन्तों भक्ति शतों गुरुवान
शत्गुरु के द्वारा
शत्संग
मार्गदर्शन प्राप्त होता है
जिसे मानो मन में
भक्ति का जनम हो जाता है
और भक्ति आपको प्राप्त हो गई हो
गुरुदिच्छा मिल गई हो
राम नाम सुन लिया हो
नामदान ले लिया हो
परंत
बार बार
सत्संग शुनना अनिवार नहीं यदि आप सत्संग नहीं शुनेंगे धेरे धेरे आपकी भक्ती डिम होती चली जाएगी कम होती चली जाएगी धीमी हो जाएगी
कितने लोग अपने घर के कारोबार में, विजनिस में, सर्विश में, खेती बाडी में, नाना धंदे में, परिवार के मोह माया में इतना बिजी हो जाते हैं
गुरु के दर्शन के लिए भी उनके पास समय नहीं है
माया जाल में इतना फास जाते हैं की गुरु की शेवा के लिए एक रुपिया धान भी नहीं कर पाते है
प्रवचन सुन भी नहीं पाते हैं, कहते हैं की प्रवचन सुनने का टाइम ही नहीं मिलता है
ऐसे लोगों की भक्ति धीरी धीरी
डेड भक्ति हो जाती है
मर जाती है
किबल भक्ति नाम की रह जाती है
भक्ति किशी काम की नहीं रह जाती है
बस अब उसको ढोना है उनको
भक्ति की लाश को ढो रहे है
भक्ती में जान नहीं
किवल
कहने को रह गया कि
वो तपो भुम्मी आश्रम
से ये भी गुरुमंत्र ले आये थे
और ये भी भक्त है
बस इतना लोग कहते हैं
वो भी कहते हैं
बाकी जीरों को भी
इसलिए
समय निकाल कर
गुरु का दर्शन भी करना चाहिए
थोड़ा थोड़ा पैसा बचाकर
गुरु जी के सिरी चरणों में
दान करना चाहिए
जैसे हमारे भक्त
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