Nhạc sĩ: Hareram Baisla
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प्राथम सुम्रोश्री कजानन जो शिवकौरा पुत्र कहाई माति शारिदासरस्वती के
श्वी चर्णों में ध्यान लगाई इंद्रदेव बज्रंग बली को
सच्चे दिल से रहे मनाई गुरुदेव का सुमिरन करके
हात मिलीनी कलम उठाएं खोली वाले बाबाजी की
कथा आपको रहे सुनाई श्रीराम किरसन अवतारी
मोहन राम संत कहलाई राजस्थान जिला अलवर में
पावन काली खोली धाम परवत उपर काली खोली
वास करे जहां मोहन राम काम मिलकपुर में है मंदिर
जिसको पूजे सब संसार पास में आलोपुर मंदिर है
हैं दोनों की महिमा अपार जब जब धर्म की हानी होती
प्रभू लेते हैं अवतार पाप बढ़ा कली युग में भारी
मन मोहन ने किया विचार भले मनुष का जीना मुश्किल
भोग रहे है कस्त अपार पापी दूस्ट मोच करते हैं
करते भारे अत्याचार हे प्रभू जी लाज बचाओ
धर्ती माता करे पुकार मेरे बस की नहीं फैलना
पाप का जादा बढ़ रह भार त्राही त्राही करे देवगण
अपनी नहीं बसाती पार तेरे भगत दुखी है भारी
कुछ तो सोचो कृष्ण मुरार करुन पुकार सुनी भगतों
की भाव विभोर हुए करतार काली खोली में प्रकट हुए
मोहन राम कहे संसार बाबा मोहन की गाधा का
भगतों बहुत बड़ा विस्तार तीन लोक नो धंड भवन के
चोदह में होती जैकार कृष्ण जी ने भगतों के लिए
साधु काली अभेश बनाए काली खोली मीजा करके
अपना धूना दिया लगाए कृष्ण जी ने फिर पर्वत पे
अपनी लिला दैई रचाए मन ही मन मुस्कावण लागे
एक सुन्दर सीक उबनाए उसी समय एक नंदू ब्रामण
जो कृष्ण का भगत कहाए अपनी गउचराने को वो
रोजानमिलकपूर पर्वत आए गउचराता ध्यान लगाता
कृष्ण जी के महिमा गाए श्री कृष्ण के बिना भगत को
कुछ बे और सुहाता नाए परम भगत था वो प्रभू का
रखता श्री कृष्ण भगवान आट पहर चोबिस सों घंटे
प्रभू मैं रखता था ध्यान खोया रहता हरे भजन में
तोड़ दिया उसने मोह जार हे मन मोहन गिर्वर धारी
मुझको दरिशन दो नन्दलाल आओ कानहा मुरली वाले
करता हूँ तेरा इंतिजार तुम तो दोड़े दोड़े आते
भगतों की सुन करुण पुकार क्या गलती हो गई मेरे से
जो सेवक को धिया भुलाए मैं प्रभू मूरख अज्ञानी
नैम टैम कुछ जानो नाए राधे कृष्णा राधे कृष्णा वो नित परवत पे चिलाए
आः सेवक के धीर बंधाओ वर ना दूँगा जान गवाए करुण पुकार सुनी नंदु की
मुरली वाला खुष हो जाए भकती में शक्ती होती है
श्री कृष्ण जी लेर जाए गवु लोक को छूड के आए
होली में प्रकट हो जाए छिम्टा गाड दिया धूने में
अपना आसन लिया जमाए बिज बिहारी मन मोहन ने
अपनी लिला दैई रचाए अजब अलोकिक गवु निराली
जो माया से दैई बनाए चरते चरते वो गईया फिर
उसके गाईयों में मिल जाए जहाँ शिला पे नंदु बैठा
उसके धोरे पहुची आए ध्यान लगा नंदु बैठा था
आँख मुद के हरी मनाए जोर से रमभाई जा करके
ध्यान तूट नंदु का जाए आँख खोल के उसने देखा
मन में करने लगा विचार ऐसी गऊँ कभी ना देखी अदबत रूप दिया करता
आए स्वर्ग लोक के काम धेनू ऐसी ही सुननी में आए धन्य धन्य है भाग हमारे
इसके दर्शन लिये पाई गौउं लोक के ये लगती
है इसके कोई बराबर नाए लंबा लोट गया था नंदु
सर चर्णों में दिया जुखाए अजब अलोक एक गऊँ देख के
नंदु मन ही मन हरशाई कृष्ण जी मेरे तैं खुष है
ये संदेशा दिया पहुचाए भाव विभोर हुआ था ज़्यादा
आँखों से बहती जलधार मुझको दर्शन दिखलाऊगे
आपका है सेवक पर प्यार भोगया प्रानों से प्यारी
भोगया प्रानों से प्यारे नंदु के मन को गई भाई
प्यार लुटाता रोज खुजाता सेवा भाव रहा दिखलाऊगे
प्यार लुटाता रोज खुजाता सेवा भाव रहा दिखलाऊगे
लग चले कहीं जाये इसी तरह से एक साल तक
नंदु ने बोदई चराये एक रोज इसके बारेनी
नंदु करने लगा विचार इसकी गईया कहां से आती
पता लगाऊँगा इस बार दिन ढल गया अंधेरा छाया
दिन ढल गया अंधेरा छाया सूरे देव अस्त हो जाये घर को अपने गईया हाकी
लाथे लिने हाथ उठाये वो गईया बच कर चली थी
रस्णा अलग लिया अपनाये नंदु उसके पीछ चला था
मन में ली थी मता उपाएं उसका पीछा आज करुँगा
रोजी रोजी ये कहां से आये इतनी प्यारी किसकी गईया
सारा भेद आज खुल जाये थोड़ी देर में चलते चलते
एक गुपा में वो बढ़ जाये शुरू में था घनखोर अंधेरा
नंदु थोड़ा सा घबराएं हिम्मत करके अंधर पहुचा
क्रिष्ण जी का ध्यान लगाएं भीतर जा करके जो देखा
उसकी अकल गई चकराएं गुपा के अंधर दिव्य रोशनी
नंदु देख देख रह जाये हवन यग्य के खुश्बू आती
मन में गया बहुत हरशाएं निच जीवन में उसने कभी भी
ऐसा अनुभव किया था नाएं स्वर्ग लोक जैसे अनुभूती थी
उसका रोम रोम खिल जायें धूने पे एक संत निराला
जो नंदु को पढ़ा दिखायें आजब अलोकिक उसकी आभा
जिसका वर्णन किया न जायें लंबी लंबी लटा सुनहरी
सर पे रही लपेटा खायें आसन लगा रखा साधुने
जो बैठा था ध्यान लगायें दिव्य उजाला आस पास था
देख के मन पुलकित हो जायें लंबा लोट कया चर्णों में
तन का होश दिया विसरायें आँक खोल ली बाबाजी ने
जैसे
सोते से उठ जायें अपना भक्त सामने देखा
बाबा मंद मंद मुस्कायें आओ नंदू भक्त पधारो
गुपा में है तेरा सतिकार बहुत दिनों से बाट देखता
मैं करता तेरा इंतजार एक साल तुनि ग्वाला बनके
मेरी गईया दैइ चराएं मगर घिराएं अपनी लेने
अब तक तु आया थानाएं भोला भाला तु मानुस है
सादा जीवन उच्छ विचार तेरा जीवन धन्य हुआ है
भगती करता जो लगतार खुलके मांग घिराएं अपनी
दिल में संशैना रह जाएं जो मांगोगे वो ही दूँगा
मत ना दिल में तु खवराएं अपना नाम सुना नंदू ने
हुआ है आपने दर्शन दिये दिखाएं हाथ जोड के नंदू
बोला जैहो जग के पालन हार महल हवेली कोठी बंगला
ना चाहिए धन के भंडार आपने मुझको दर्शन दिये मुझ
पे किया बड़ा उपकार और नहीं मुझ कुछ भी चाहिए
हे बाबा तिरा चाहे प्यार आपका भेद जान ना पाया मैं तो हूँ मूरक आज्ञान
अपना असले रूप दिखा कर कर दो मेरा भी कल्यान नंदू जी के वाने सुनकर
मुझकाई सादू महराज हुई तपस्या तेरे पूरे
तुझको दर्शन
दिये जो आज जब जब धर्म की हानी होती जग में बढ़ता अत्याचार
भक्तों की रक्षा करने को तब तब लेता मैं अवतार त्रेता
युग में दशिरत के घर मैं बन कर आया श्रेराम रावन
कुंब करन से मारे दिये राक्षस मार तमाम द्वापर
युग में देव की नंदन मात यशोदा कानन्दलाल भार तार दिया पृत्वी का
घीता का दिया घ्यान कमाल अब खोली में प्रकट हो गया राम कहो या मुझको शाम
मोहन और राम दोनों से मुझको समझो मोहन राम फिर बाबा ने नंदु भगत को
फिर बाबा ने नंदु भगत को दे दिया था ये वर्दान मिरे भक्ति के शक्ति से
करेगा तू जग का कल्यान सची शंता और भक्ति से
जो कोई काली खोली आए पाकर के आशीष तुम्हारा
उसके सब संकट कट जाए आए दोजप काली खोली
जो आकर के जोत जलाए कोडी को दू सुन्दर काया
कंगले को दू धनी बनाए बाँजण को मैं पुत्र दूँगा
जो कोई सचे दिल से ध्याए अंधों को मैं नेत्र दूँगा
जो कोई दिल से मुझे मनाए सुभह शाम जो करे आरती
भरे जलहेरी राह बुहार चैटी जिमावे चुको गेरे
उसका हो जा बेडा पार फेर विराट रूप दिखलाया
फेर विराट रूप दिखलाया दिव्ये द्रिष्टे
कर वर्दान चक्र सुधर्शन लिये खड़े थे
परम पिता विश्णो भगवान तेज सैकडो सूरज का था
जिसका वर्णन किया न जाये चतुर भुजी भगवान सामने
रूप अलोकिक रहे दिखाये रोम रोम खिल गया भखत का
जगत पिता के दरिशन पाये भाव विभोर हुआ था नन्दू
मुह से बोल निकलता नाए आखों से आसु बह निकले
चर्णों में लंबा गिर जाए जैहो जैहो दीन दयालों
दिया विराट रूप दिखलाए पहला भाग हुआ ये पूरा
मोहन की दै कथा सुनाए नमन करे हरे राम बैसला
दोजा भाग भी रहे बनाए नमन करे हरे राम बैसला