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Srimad Bhagavad Gita Chothe Adhyay Ka Mahatmya

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Kailash Pandit

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Lời bài hát: Srimad Bhagavad Gita Chothe Adhyay Ka Mahatmya

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरादी हे नाथ नारायन वासु देवा
बुलिये हारे के सहारे कृष्ण हमारे की जैरे
प्रिये भक्तों, श्रीमत भगवत कीता के चोथे अध्याय के पश्चात आईए हम आपको सुनाते हैं
चोथे अध्याय का महात्म आईए भक्तों आरंब करते हैं
श्रीमत भगवत कीता की महिमा का वर्णन करते हुए भगवान विश्णू ने लक्ष्मी जी से कहा
हे लक्ष्मी, गीता का नियमित पाठ करने वाले तो मोक्ष प्राप्त करते ही हैं
उनको छूने मात्र से भी अनेक पापी अज्ञान से छुटकारा पाकर विवेक को प्राप्त हुए हैं
लक्ष्मी जी ने पूछा, हे महराज, शी गीता जी के पाठ करने वालों को छूकर कोई जीव मुक्त भी हुआ है
तब शी भगवान ने कहा, हे लक्ष्मी, तुमको मुक्त हुए पुरुष की पुरातन कथा सुनाता हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो
भागिर्थी गंगा के किनारे काशी नगर है, वहाँ एक वैश्णव रहता था
वह शी गंगा जी में इस्तान कर, शी गीता जी के चोथे अध्याय का प्रति दिन पाठ किया करता था
एक दिन वह वैश्णव वन में गया, वहाँ बेरी के दो वरक्ष थे
वह गीता पाठी वैश्णव उनकी छाया में बैठ गया, और बैठते ही उसको नित्रा आ गई
एक बेरी से उसके पाउं लगे, और दूसरी बेरी के साथ सिर लग गया, तो दोनों बेरीयां काप कर पृत्थी पर गिर पड़ी
उनके पत्ते सूह गये, और इस प्रकार वे दोनों मुक्ती को प्राप्त हुई
उन दोनों बेरीयों का जन्म दो कन्याओं के रूप में एक ब्रह्मन के घर में हुआ
दोनों लड़कियों ने उग्र तप करना प्रारंब किया
जब दोनों बड़ी हुई, तब उनके माता पिता ने कहा
हे पुत्रियों, हम तुम्हारा विभा करना चाहते हैं
तब उन दोनों ने उत्तर दिया कि हम विभा नहीं करेंगी
उनको अपने पिछले जन्म की सब बाते याद थी
उनके मन में यही था कि वे साधु
जिसके सपर्श करने से हमारी अधम देह छूट कर
यह देह मिली है, वह हमें मिले
इतना विचार कर उन दोनों लड़कियों ने
माता पिता से तीर थ्यात्रा करने की आज्या माँगी
माता पिता ने आज्या दे दी
तथा उन दोनों कण्याओं ने
माता पिता के चरण चूकर प्रस्थान किया
तीर्थ यात्रा करती करती
वे दोनों काशी में पहुँची
वहाँ जाकर देखा
कि वे तबस्वी बैठा है
जिसकी कृपा से वो बेरी की देह से छूटी थी
तब दोनों कन्याओं ने चरण चूकर
दंडवत किया और कहा
हे संत जी
धन्य हो आपने हमको कृतार्थ किया है
तब उस तबस्वी ने कहा
कि मैं तो तुमको जानता नहीं
कन्याओं ने कहा
हम आपको पहचानती हैं
हम पिछले जन्मे बेरीयों की योनी में थी
आप एक दिन वन में आए
आधिक धूप के कारण
बेरीयों की छाया तले आ बैठे
लम्मा इस्थान ना होने से
एक बेरी से चरण
और दूसरे से सिर लगा
उसी समय हम बेरीयों की देह से मुक्त हुई
अब विपर के घर में जन्मी हैं
बड़ी सुखी हैं
आपकी कृपा से हमारी गती हुई
तब तपस्वी ने कहा
मुझे इस बात की ख़वर न थी
आपकी क्या सेवा करूँ
तुम ब्रह्म रूप उत्तम जन्म
श्री नारायन जी का मुख हो
तब उन कन्याओं ने कहा
हम को श्री गीता के चोथे अध्याय का
फल दान करो
जिसको पाकर हम देव देही पाकर
सुखी होए
तब उस तपस्वी ने चोथे अध्याय के पाठ का फल दिया
और कहा कि तुम्हारी मुक्ती हो
इतना कहते ही आकाश से विमान आये
उन दोनों ने देव देख पाकर
वैकुंठ को गमन किया
पिर तपस्वी को ग्यात हुआ
कि श्री गीता जी के चोथे अध्याय का
ऐसा महत्म है
तो बोलिये श्री कृष्ण भगवाने की
जैसे
इती श्री पदम पुराने उत्राखंडे
गीता महत्म नाम
चोथा अध्याय समाप्तम
प्रिये भगतो
तो इस प्रकार यहाँ पर
श्री मत भगवत गीता के
चोथे अध्याय का
महत्म समाप्त होता है
ओम नमों भगवते
वासु देवा ए नमहा
नमहा

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