Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवा
बन्सी वजईया रास रचईया श्री कृष्ण भगवाने की जै
प्रिय भक्तो श्री मत भगवत गीता के पहले अध्याय का महात्म सुनाने जा रहा हूँ
सत्तचित से सुनेंगी तो आनन्द के साथ कल्यान भी होगा
तो बोले श्री कृष्ण भगवाने की जै
एक समय कैलाश परवत पर महादेव जी से पारवती जी ने पूछा
हे प्राणनात आप किस ज्ञान से इतने पवित्र हुए हो
कि आपको संसार के लोग परम पवित्र शिवशंकर मान कर पूछते हैं
आप तो मुरकशाला ओड़े अंगों में शम्शान की भभूत लगाए
गले में सर्पों और मुन्नों की माला पहन रहे हो
इन में तो कोई कर्म पवित्र नहीं
अते है आप मुझे वह ज्ञान सुनाओ जिस से आप पवित्र हो
शिरी महदेव जी ने उत्तर दिया
प्रिये सुनो
जिस ज्ञान को मन में धारन करने से मैं पवित्र हुआ हूँ
उस ज्ञान से मुझे बाहर के कर्म प्रभावित नहीं करते
शिव जी बोले
एक समय शेष शैया पर शी
नारायन जी नेत्र बंद कर
अपने आनन्द में मगने थे
भगवान के चरण दबाते हुए
शी लक्ष्मी जी ने पूछा
ही प्रभू
निद्रा और आलश्य
उन पुर्शों को व्यापता है
जो तामसी है
आप तो तीनों गुणों से परे हो
फिर भी आप नेत्र बंद किये हो
यह मुझको बड़ा आश्चरिय है
शी नारायन जी बोले
हे लक्ष्मी
मुझको निद्रा और आलश्य
नहीं व्यापता
भगवत गीता में
जो ज्यान है
उसके आनन्द में मगन रहता हूँ
जैसे सोले अवतार
मेरे आधार रूप है
वैसे ही ये गीता
शब्द रूपी अवतार है
इसके पांच अध्याय
मेरे मुख है
पांच अध्याय मेरी भुजाएं है
पांच अध्याय
मेरा हिर्दय और मन है
सोहलवा अध्याय
मेरा उदर है
सत्रमा अध्याय
मेरी जांगे है
और अठारवा अध्याय चरण है
इसमें जितने स्लोक है
मेरी नाडिया है
और जो अक्षर है
मेरे रोम है
ऐसा जो मेरा शब्द रूपी गीता ज्ञान है
उसके अर्थ को मैं हिरदे में विचारता हूँ
और बहुत आनंद पाता हूँ
तब लक्ष्मी जी कहने लगी
हे नारायन
जब श्री गीता जी का ऐसा ज्ञान है
तो उसको सुनकर कोई जीव कृतार्थ भी हुआ है
तब श्री नारायन जी ने कहा
हे लक्ष्मी
गीता के ज्ञान को सुनकर
बहुत से जीव कृतार्थ हुए है
और आगे भी होते रहेंगे
एक प्राचीन इतिहास सुनाते हुए
भगवान विश्णू ने कहा
हे लक्ष्मी
शुद्र वर्ण का एक व्यक्ति
चांडालों के कर्म करता था
और तेल लवन का व्यावार करता था
उसने एक बकरी पाली
एक दिन वे बकरी चराने को वन में गया
और वक्षों के पत्ते तोड़ने लगा
वहां सांप ने उसको डस लिया
और वह तुरंत मर गया
मर कर उस प्राणी ने
बहुत से नरक भोगे
और फिर बैल की यो नहीं पाई
उस बैल को एक भिक्षुक ने खरीद लिया
भिखारी उस बैल पर चड़कर
सारे दिन मांगता फिरता
और कुछ भिक्षा मांगकर लाता
वह अपने कुटुम के साथ मिलकर खाता
बैल सारी रात द्वार पर बंधा रहता
उसके खाने पीने की कोई ख़वर न लेता
इस प्रकार कई दिन बीते
तो वह बैल भूख के मारे गिर पड़ा
वह मरने लगा
परन्त उसके प्राण नहीं छूटते थे
एक दिन एक गणिका आई
उसने लोगों से पूछा ये भीड कैसी है
एक व्यक्ति ने कहा
इस बैल के प्राण छूटते नहीं है
अनेक पुन्यों का फल दे रहे हैं
तो भी इसकी मुक्ति नहीं होती
तब गणिका ने कहा
मैंने जो कर्म किया
उसका फल मैंने इस बैल के निमित्त कर दिया
इतना कहते ही
उस बैल की मुक्ति हो गई
अगले जन्म में
उस बैल ने ब्राह्मन के घर में जन्म लिया
पिता ने उसका नाम सुशर्मा रखा
उसको पिछले जन्म की याद थी
अते उसने एक दिन मन में सोचा
कि जिस गणिका ने मुझे बैल की योणी से छुडाया था
उसके दर्शन करो
प्रिये
चलता चलता गणिका के घर चला गया
और कहा
तु मुझे पैचानती है
गणिका ने कहा
मैं नहीं जानती तु कौन है
क्योंकि तु विप्र है
और मैं वैश्या
तब विप्र ने कहा
मैं वही बैल हूँ
जिसको तुने अपना पुन्य दिया था
तब मेरी मुक्ती हुई थी
तब मैंने विप्र के घर जन्म लिया है
तु अपना पुन्य बता
वैश्या ने कहा
मैंने अपनी याद में कोई पुन्य नहीं किया
परन्तु मेरे घर एक तोता है
वे सवेरे कुछ पढ़ता है
मैं उसके वाक्य सुनती हूँ
उसी पुन्य का फल मैंने तेरे निमित कर दिया था
तवस विपर ने तोते से पूछा
कि तु सवेरे सवेरे क्या पढ़ता है
तोते ने कहा
मैं पिशले जन्म में विपर था
पिता ने मुझे गीता के पहले अध्याय का पाठ पढ़ाया था
एक दिन मैंने अग्यानवश गुरु का पान कर दिया
तब गुरु जी ने मुझे शाब दिया
और मैं तोता बन गया
एक विपर ने मुझे मोल लिया
वै विपर भी अपने पुत्र को गीता का पाठ पढ़ाता था
तब मैंने भी वै पाठ सीख लिया
एक दिन ब्रह्मन के घर चोर आए
उन्हें धन प्राप्त न हुआ
पिंजरा उठा कर ले गए
उन चोरों की या गणी का मित्र थी
मुझे इसके पास ले आए
मैं नित्य गीता जी के पहले अध्याय का पाठ करता हूँ
और यह सुनती है
वही पुन्य तेरे निमित्य दिया था
तब विपर ने कहा
हे तोते
मेरे आशिर्वाज से तिरा कल्यान हो
इतना कहने से
तोते की मुक्ती हो गई
उस गणिका ने भले कर्म ग्रहन किये
और नित्य प्रती स्नान कर
गीता के प्रथम अध्याय का पाठ करने लगी
बाद में तो ब्रह्मन, शत्रिय, वैश्य
सभी उस वैश्या की पूजा करने लगे
श्री नारायन जी ने अंत में कहा
हे लक्षमी
जो कोई गीता का पाठ करे
या श्रवन करे
उसको भी मुक्ती मिलेगी
यह पहले अध्याय का महत्म
मैंने तुम से कहा
इती श्री पदम पुराने
गीता महात्म नाम
प्रथम अध्याय संपूनम
बोले शी किष्ण भगवाने की
जै
प्रिय भगतो
इस प्रकार यहाँ पर
श्री मत भगवत गीता के
गीता महात्म का
यह अध्याय समाप्त होता है
बोले शी किष्ण भगवाने की
जै
ओम नमों भगवते
वासु देवाए नमहा
नमहा