Nhạc sĩ: Traditional
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श्री क्रेश्न गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवा
मुरली बजईया राश रचईया भगवान श्री क्रिष्ण की जै
प्रिये भक्तों आईए हव आपको सुनाते हैं श्रीमत भगवत कीता की प्रश्ट भूमी
जगत बंधु जोती स्वरूप जिय की जानन हा
हरि से यश मांगन आया दास प्रभू
उके द्वा अर्जुन को गीता का जो ज्ञान भगवान श्री क्रिष्ण ने दिया है
मैं वह मुझissant मिले और है है भगत बतसल भगवान श्री क्रिष्ण जी आपका यह भवाग
भक्त आपसे गीता काय ज्ञान मांगता है।
हे प्रभु, गीता का पठन पाठन और श्रवन करने से भक्त तेरे पून रूप को पाता है।
हे प्रभु, मैं आपके चर्णों की शरन लेता हूं।
आप परम्परवीन हो, और मैं आपकी शरन में पड़ा हूं।
हे प्रभु आप भक्तों की विन्ती को मान लेते हो, सो हे कमला वल्लब, हे कृपा निधान जी, आपको और आपकी भक्ती को प्राप्त करने हेतु, सरल भाषा में रचित इस श्रीमत भगवत गीता को सुन रहा हूँ।
जब कौरो और पांडव विशाल सेनाओं सहित महा भारत युद्ध के लिए कुरूक शेत्र के मैदान में चलने लगे, तब राजा धृतराष्ट ने कहा कि मैं भी युद्ध देखने के लिए चलूंगा।
इसपर वेद व्यास जी ने कहा कि राजन तुम तो दृष्टि हीन हूँ, फिर युद्ध किस प्रकार देख सकोगे। तब धृतराष्ट ने व्यास जी से कहा कि हे प्रभू यह सत्य है कि मैं देख नहीं सकता, परन्तु वहां जाकर किसी से यह श्रवन तो कर सकता हूँ कि
वहां क्या क्या हो रहा है। बहराज धृतराष्ट के इस प्रकार प्रार्थना करने पर महरशी वेद व्यास जी ने कहा, हे राजन तेरा सार्थी संजय मेरा शिष्य है, जो कुछ महा भारत के युद्ध की लीला कुरुक शेत्र में होगी, संजय तुमको यहां बैठे बै�
ही शवन करवा देंगे। महरशी वेद व्यास जी के मुख से यह वचन सुनकर संजय ने श्री वेद व्यास जी के चरणों में नमस्कार किया और हाथ जोड़ कर विंती की, हे प्रभु जी, महा भारत का यह युद्ध कुरुक शेत्र में होगा, उसे मैं हस्तनापुर में ब
मेरी कृपा से तुझे यहाँ पर बैठे बैठे ही सब कुछ दिखाई देगा। जब वेद व्यास जी ने एवर दिया, तो उसी समय संजय को दिव्य द्रिष्टी प्राप्त हो गई।
वे सम्पून वार्तालाप और उपदेश घटनाओं के वृतांत सहित संजय ने राजा धितराष्ट को सुनाया।
तो आईए भक्तों, आगामी अध्यायों में हम पठन पाठन और चिंतन मनन करें भगवान शी कृष्ण के उन पावन वचनों का और साथ ही चेष्टा करें कर्म योग के उस मार्ग पर चलने की जो मोक्ष प्राप्ती का सबसे सुगम, सबसे सटीक और व्यावारिक मार्ग ह
बोले शी कृष्ण भगवान की जै
ओम नमो भगवते वासु देवाए नमः नमः