Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
श्री क्रेश्न गोविंद हरे मुरारी हे नाध नारायन वासु देवा
मुरली बज़या राश रचया श्री क्रिष्ण भगवान की जै
मुक्ती का मार्ग शीमद भगवत कीता
प्रिये भक्तों चार वेद छै शास्त्र अठारे प्राण रामायन महाभारत तथा अन्य अनेक शास्त्र
हमारे सनातन धर्म के विविद पहलुओं और आयामों का सेशक्त चित्रन करते हैं
इनमें ज्ञान विज्ञान योग साकार निराकार ब्रह्म विभिन्न देवी देवताओं और पूजा आराधना की विविद पद्धियों का सारगर्भित विवेचन है
ये सभी महत्तपून हैं और साथ ही कल्यानकारी भी
परन्तु इतने विशाल साहित्य का ध्यन और फिर उनमें से अपने प्रियोजन की सामग्री का चैन दुशकर ही नहीं लगबग असंभाव ही है
यही कारण है कि महा भारत के युद्ध में जब अर्जुन मोह में पढ़कर कर्तव्य भावना से चुत होने लगा
तब भगवान शी कृष्ण ने उसे किसी एक शास्त्र का उपदेश देने के स्थान पर धर्म के संपून मर्म को इस श्रीमद भगवत गीता के रूप में समझाया था
भगवान शी कृष्ण का यह अमर उपदेश आज भी उतना ही शक्ति, भक्ति और मुक्ति प्रदायक है जितना महा भारत काल के समय में था
और भौश्य में भी रहेगा इसमें रंच मात्र भी संदेह नहीं है
प्रिय भक्तो, सभी धर्म ग्रंथों का सार तत्व ही नहीं बल्कि सभी शास्त्रों के कुल योग से बी बढ़कर है श्रीमद भगवत गीता
भक्तो सभी शास्त्रों और धर्म शास्त्रों का आधार वेद हैं
वेद ब्रह्माजी के मुक्से प्रकट हुए हैं
और ब्रह्मा जी पद्मनाव भगवान विश्णू के नाभी कमल से उत्पन्य हुए हैं
परन्तु यह गीता तो स्वेम भगवान विश्णू के सोहले कला निधान पूर्ण अवतार भगवान श्री कृष्ण की अमरवाणी है
संसार में यह गीता ही एक मात्र वह पुस्तक है जो सीधे परमिश्वर द्वारा कही गई है
कोई देवता, रिशी, मुनी अथवा पैगंबर इसका रचनाकार नहीं है
यही कारण है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन गीता का नियमित पाठ और इसमें वर्णित ज्ञान का चिंतन मनन करते हुए
इसमें बतलाए गए मार्ग पर चलने की सतत चेष्टा करता रहता है
उसे अन्य किसी ग्रंथ के अवलोकन तक की आउशक्ता शेष्ट नहीं रह जाती
अर्थात श्रीमत भगवत गीता में ही सब कुछ समाहित है
बगतों, संसार में अनेक धर्म हैं और उन सभी के अपने-अपने धर्म ग्रंथ हैं
परन्तु श्रीमत भगवत गीता तो एक ऐसा अमर उद्घोष है
जिसमें बतलाया गया मार्ग संसार के प्रतेक प्राणी के लिए समान रूप से उपियोगी है
संसार और सांसारी कर्मों को त्यागने, नियमित पूजा पाठ करने
अथवा धर्म और सदाचार के नाम पर कोई आडंबर करने का पूरी तरह निशेद करती है
श्रीमत भगवत गीता परिवार, समाज और राष्ट के प्रती सभी उत्तरदायित्वों को पून करते हुए भी
मनुष्य किस प्रकार मुक्ति अथवा मोक्ष को प्राप्त कर सकता है
इसकी राह दिखलाने वाली संसार की एक मात्र पुस्तक है श्रीमत भगवत गीता
जीवन के महा समर्मे अर्जुन के समान पून क्रियाशेलता से अपना कार्य करते हुए भी
व्यक्ति ईश्वर का सानिध्य, चिरशान्ति और अंत में मोक्ष प्राप्त कर सकता है
इसके लिए कर्म के त्याग की नहीं बलकि कर्म करते हुए कर्म से होने वाले फलों की लिपसा का त्याग अनिवारिय है
और यही है गीता का अमर संदेश
जब हम कर्म योग के संदेश को एक बार अंगीकार कर लेते हैं
तब संसार के सभी कर्म और कर्तव्य हमारे लिए इश्वर का आदेश बन जाते हैं
तथा उन से प्राप्त होने वाले फल इश्वर की कृपा का प्रसाद होते हैं
इस प्रकार निश्काम भाव से अपने सभी कर्म करने वाले कर्म योगी को
ना तो सपलता पाने पर हर्ष होता है और नहीं असफल होने पर किसी प्रकार का विशाद ही होता है
यहाँ तक कि उसे उस कर्म के करने का पुन्य अथवा पाप भी नहीं लगता
क्योंकि ईश्वर की इच्छा मानकर सभी कर्म करने वाला कामना से रहित कर्म योगी स्वयं को उन कार्यों का करता भी नहीं मानता।
भगवान शी कृष्ण अपने इस अमर उपदेश घीता में बारंबार स्वयं अपने श्री मुक्से कहते हैं।
हे अर्जुन इस प्रकार के निशकाम कर्म योगी मुझे सभी प्रकार के भक्तों और योगियों में सबसे प्रिय हैं।
अन्य भक्तों को तो मैं स्वर्ग देता हूँ और स्वर्ग में अपने फलों को भोगने के पश्चात वे प्राणी पुनह संसार में जीवन धारन करते हैं।
परन्तु निशकाम भाव से कर्म करने वालों को तो मैं मोक्ष देकर आवागमन के इस चक्र से सदा सदा के लिए मुक्त कर देता हूँ।
प्रिय भक्तो भगवान श्री कृष्ण की अमरवाणी श्रीमद भगवत गीता की यह हिंदी टीका प्रस्तुत करते समय हमने प्राण प्रण से चेष्टा की है कि मूल गीता में वर्णित भाव और विचार आप तक उनके शुद्धतम रूप में पहुँचे।
परन्तु ग्यान के इस सागर में कर्म योग और सांख्य दर्शन के रत्नों की प्राप्ती न तो केवल तरक द्वारा हो सकती है और नहीं बिना सोचे समझे बारंबार पाठ द्वारा।
महत्व इस बात का नहीं है कि हम कितने प्रिष्ट प्रते दिन पढ़ते हैं। मुख्य महत्व इस बात का है कि हम जितना भी पढ़ते हैं उस में से कितना अपने जीवन में उतारने की चेश्टा करते हैं।
अर्जुन के समान भगवान पर दृढ आश्था रखकर गीता का पाठ करना
और उसमें बतलाये निशकाम कर्म योग के मार्ग पर चलने की चेष्टा करना ही मुक्ती का एक मात्र मार्ग है
यह हमारा नहीं स्वेम भगवान शी कृष्ण का कथन है
बोली शी कृष्ण भगवान की जैए
ओम नमो भगवते वासु देवाए नमः नमः