Nhạc sĩ: Traditional
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श्री क्रेश्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवा
मुरली बजईया राश रचईया श्री क्रिष्ण भगवान की जै
तो प्रिय भक्तों आईए आरंब करते हैं श्री मत भगवत घीता का पहला अध्याय
और इसकी कथा है अर्जुन विशाद योग तो बोली श्री क्रिष्ण भगवान ने की जै
महराज ध्रतराष्ट ने संजे से पूछा हे संजे धर्म के एक शेत्र कुरुक शेत्र में
युद्ध की इच्छा से एकत्रित हुए मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया
वह मुझसे विस्तार पूर्वक कहूँ
संजे ने कहा
हे राजन पांडवों की सेना के समू और व्यूह रचना को देखकर
आपका पुत्र दुर्योधन गुरु द्रोणाचारिय के निकट गया
और विनेपून स्वर में उनसे बोला
हे आचारिय पांडवों की सेना समू और व्यूह रचना को देखिए
आपका शिष्य और दुर्पद का पुत्र धृष्ट धुम्न कैसा बुद्धिमान है
जिसने पांडवों की सेना की व्यूह रचना इतनी भली भाती बनाई है
हे राजन इसके बाद दुर्योधन पांडवों की सेना के प्रुंख योध्धाओं के नाम
गुरु द्रोणाचारिय को इस प्रकार सुनाता है
गुरुदेव उनकी सेना में गदाधारी भीमसेन, धनुषधारी अर्जुन और युयुधान
राजा विराठ, राजा दुरुपद, महार्थी ध्रितकेतु, चेकितान, बड़ा बल्वान काशी का राजा और पुर्जित
कुंती भोज, मनुष्यों में सरवशेष्ट शैव्य, युधामन्यू और विक्रांत
अत्यधिक बल्वान, उत्तमोजा, सुबध्रा का पुत्र अभिमन्यू और द्रोपदी के पाँचो पुत्र हैं
ये सभी बड़े वीर और महार्थी हैं
अब दुरियोधन अपनी सेना के मुख्य युधाओं के नाम और बल सुनाता है
हे ब्रहमणों में श्रेष्ट आचारिय जी, मेरी सेना के जो मुख्य युधा हैं, उनके नाम सुनिये
प्रथम तो आप और भीश्म जी, करण, कृपाचारिय जी, समिती जय, अश्वत्धामा, विकरण, और भूरीश्रवा, जैद्रत आदी के साथ और भी अनेक युधा हैं
इन्होंने मेरे निमित अपना जीवन दाव पर लगा दिया है
ये सभी अनेक प्रकार के शस्त धारन करने वाले हैं और युध करने में बड़े चतुर हैं
दुरियोधन ने आगे कहा, हमारी सेना ग्याहरे अक्षोणी है और पांडवो की सेना मात्र साथ अक्षोणी है
भीश्म पितामें द्वारा रचित हमारी सेना सब प्रकार से अजिए है और भीम सेन द्वारा रचित उनकी सेना जीटने में एकदम सुगम है
दुर्योधन ने सभी सेनापतियों से कहा
हमारे प्रधान सेनापती भीश्म पितामा है
अते आप सभी अपनी अपनी जगों पर इस्तित रहते हुए
सब ओर से भीश्म पिताम है कि अच्छी प्रकार से सुरक्षा कीजिए
संजय आगे कहने लगा
हे राजन दुर्योधन के मुक से भीश्म आदी योध्धाओं ने यह वचन सुनकर
उसको प्रसन्न करने के लिए वयोवरद भीश्म पितामा है ने
सिंग की तरह गरच कर अपना प्रतापवान शंक बजाया
इसके उपरांथ दुर्योधन की सारी सेना ने शंक और भेरी
धोल नगाडे, नर सिंगे आदी अनेक प्रकार के बाजे एक साथ बजाये
उन वाद्यंत्रों का बड़ा भेंकर शब्द हुआ
अब पांड़ों की सेना ने जो बाजे बजाये उनको कहते हैं
जिस रत पर श्री कृष्ण भगवान विराजमान है
उस बड़े रत की सारी सामग्री कंचन की है
और रत्नों से जडित है
जैसे मेघ गरजता है, वैसे ही रत के पहियों की आवाज है
जैसे गो का दूद होता है, वैसा ही एकदम सफेद घोडों का रंग है
और जैसे कार्तिक का फूला हुआ कमल होता है, ऐसा सुन्दर घोडों का मुख है
उस रत में जुते सभी घोडे अत्यंत सुन्दर हैं
और उनके पैरों में स्वर्ण के नुपर पड़े हैं
ऐसे सुन्दर रत पर सार्थी, भक्त वत्सल, सत्य स्वरूप, आनंद कंद श्री कृष्ण भगवान विराजमान है
और योध्धा के स्थान पर गांडिव धनुरधारी अर्जुन भक्त विराजमान है
उन्होंने भी अपने अपने दिव्य शंख बजाए
संजे आगे कहने लगा
शेष्ट धनुश वाले काशी राज और महार्थी शिखंडी
एवं द्रिष्ट धुम्न तथा राजा विराट एवं अजे सात्य की
राजा द्रुपद एवं द्रोपदी के पाचो पुत्रों और बड़ी भुजाओं वाले सुबद्रा के पुत्र अभिमन्यू
इन सभी ने सब ओर से अपने अपने शंख बजाए
हे राजन उन सभी शंखों के भयानक शब्द ने आकाश और पुर्थ्वी को गुञ्जाय मान करते हुए
आपके पक्ष वालों के हिर्दे विदीर्ण कर दिये
संजय ने आगे बतलाया
हे राजन इसके बाद कपी ध्वज अर्जुन ने मोर्चा बांध कर डटे हुए सम्मंधियों को देखकर
शी कृष्ण महराज से कहा
हे अच्छुत मेरे रत को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये
जिससे मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अविलाशी युद्धाओं को बहली प्रकार देख सको
दुर्योधन का हित चाहने वाले उन राजाओं और युद्धाओं को मैं भली प्रकार देखना चाहता हूँ जिन से मुझे युद्ध करना है
हे राजन अर्जुन के इस प्रकार कहने पर
श्री कृष्ण ने दोनों सेनाओं के बीच में
भीश्म, दुरोनाचारिय तथा सभी राजाओं के सामने
उस उत्तम रत को खड़ा करके कहा
हे पार्थ, युद्ध के लिए जुटे इन कोर्वों को देख
प्रधापुत्र अर्जुन ने उन दोनों की सैनाओं में इस्थित
ताऊ, चाचो, दादो, परदादो, गुरुवों, मामाओं, भाईयों,
पुत्रों, पोत्रों, मित्रों, ससुरों और अन्य अनेक संबंधियों को देखा
दोनों ही सैनाओं में अपने परिजनों, सम्मंधियों और मित्रों को देखकर अर्जुन के तन में मोह उत्पन्य हो गया
अर्जुन दुखी स्वर में भगवान केशन से इस प्रकार कहने लगे
हे माधव, कोरों की सैना में जो युद्धा और राजा युद्ध के लिए उपस्थित हैं
वे सभी अपने भाई, बंधु और कुटुम्बी हैं
उनको देखकर मेरा मन बहुत दुख पा रहा है
मेरा मुख सूख रहा है, मेरी देह कांप रही है
मेरे संपून शरीर में पसीना आ गया है
मेरे रोम खड़े हो गये हैं
और गांडीव धनुष मेरे हाथ से गिर रहा है
मैं खड़ा भी नहीं रह सकता
और मेरा मन भी भ्रम में पड़ गया है
हे केशव, मैं शकुन भी बुरे देखता हूँ
और मैं यह उचित भी नहीं समझता कि
अपने ही भाईयों से राज्य के निमित युद्ध किया जाए
अर्जुन आगे बोले
हे जनारदन, मुझे अपने भाईयों और संबंधियों से युद्ध करना होगा
परन्तु, युद्ध में अपने ही भाईयों को मारने में मैं
किसी प्रकार का कल्याण नहीं देखता
भाईयों को मारकर मैं अपनी जय नहीं चाहता
मुझे राज्य की भी इच्छा नहीं है
और किसी भी अन्य प्रकार के सुख वैभव की चाह भी नहीं है
हे कोविंद, वह राज्य किस काम का है
और उस राज्य के भोग किस काम के है
जिसके निमित कुटुम्ब के लोगों को मारना पड़े
वहां कुटुम्ब के सभी युध्धा लोग
प्राण और धन का मोह त्याग कर
युध के निमित खड़े हैं
उनमें गुरू हैं, पितामे हैं, पुत्र हैं, तात हैं, श्वसिर हैं, पोत्र हैं, साले और सम्मंधी हैं
हे मदु सुधन, इनको मारने की मुझको इच्छा नहीं, इन सभी पर मुझको बहुत दया आ रही है
दुखित अर्जुन ने आगे कहा
हे मदु सुदन इनको मार कर यदी मैं तिरलोक्य का राज भी पा जाओं तब भी मैं इनको नहीं मारूंगा
भूमी के राज्य की तो बात ही क्या है
हे जनार्तन धृतराश्ट के पुत्रों को मारने में हमारा कल्याण नहीं बलकि कुल की हानी ही होगी
इनको मारने से हमको बड़ा भारी पाप लगेगा
जद पि ये लोग महापापी हैं तो भी मारने के योग नहीं हैं
हे प्रभु ये सभी पूजने योग हैं
हतै मैं इनको नहीं मारूँगा
हे माधव
भाई बंधुओं और कुटुम्ब के लोगों को मारने में सुख कहा हैं
मुक्ती कहा है
यदपी राज के लोब से इनकी बुद्धी भ्रष्ट हो गई है
और ये युद्ध के लिए तत्पर हैं
बड़े पिताशरी
द्रतराश्ट के ये पुत्र कुल नश्ट करने से
और भाईयों के साथ कपट करने से जो दोश उपजते हैं
उनको नहीं समस्ते
परन्तु मैं तो उन दोशों और पापों को जानता हूँ
कुल नश्ट होने से उत्पन्ने होने वाले दोशों का वर्णन करते हुए
अर्जुन बोले
हे यदुवन्शियों में शेष्ट श्री कृष्ण
जिसने कुल को नष्ट किया
उसने इतने पाप किये
और ये सभी पाप कुल को नष्ट करने वालों को लगते हैं
फिर वह मनुष्य उन पापों का भल क्या पाता है
सो सुनो
वह प्राणी सदा नर्क भूकता है
न्याय शास्त्र में मैंने श्रवन किया है
संजय ने आगे कहा
हे राजन इतना कहकर अर्जुन हाथ मलकर पच्टाने लगा
और भगवान शी कृष्ण से कहने लगा
हाई शोक महा शोक
हम लोग बुद्धिमान होकर भी
महान पाप रूप इस युद्ध को करने के लिए तैयार हो गए
यह हमने कैसा पाप किया
कि राज्य और सुख के लोभ में
अपने स्वजनों से ही युद्ध करने को तैयार हो गए
हे माधव मैंने तो युद्ध करूँगा
और नहीं शस्त उठाऊंगा
यदि मुझ निहत्य को धितराष्ट के पुत्र मार भी डाले
तो मेरे लिए हितकर होगा
परन्तु मैं उन पर आगात नहीं करूँगा
यह कहते हुए शोक से उद्वीगन अर्जुन धनुष बान रखकर
रत के पिछले भाग में बैठ गए
इति श्रीमद भागवत गीता विशाद योगो नाम तर्थमो अध्याय समाप्त
बोलिये श्री कृष्ण भगवान की जै
तो प्रिय भक्तो इस प्रकार यहाँ पर
श्रीमद भगवत गीता का विशाद योगो नाम का प्रत्म अध्याय
समाप्त होता है
बोलिये शे किष्ण भगवाने की
जै
ओम नमो भगवते वासु देवाई
नमः नमः